शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
सनातन धर्म में योग दर्शन क्या है?
योग दर्शन सनातन धर्म के छह प्रमुख दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक है, जिसका उद्देश्य आत्मा (पुरुष) और परमात्मा (ईश्वर) के साथ एकत्व प्राप्त करना है। यह दर्शन महर्षि पतंजलि द्वारा प्रवर्तित है, जिन्होंने योग के सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप से "योगसूत्र" में प्रस्तुत किया। योग दर्शन का मुख्य लक्ष्य आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष (कैवल्य) की प्राप्ति है।
योग दर्शन मन, शरीर और आत्मा को संतुलित कर जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुँचाने का साधन है। यह केवल एक आध्यात्मिक मार्ग नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला भी है। योग दर्शन व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के सत्य से परिचित कराता है और उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर परिपूर्णता प्रदान करता है।
- योग का शाब्दिक अर्थ है "जुड़ना" या "एकता"।
- यह आत्मा और परमात्मा के बीच एकता का माध्यम है।
- योग का उद्देश्य मन, शरीर और आत्मा को संतुलित कर आध्यात्मिक जागरूकता लाना है।
- महर्षि पतंजलि योग दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं।
- उन्होंने "योगसूत्र" के माध्यम से योग को परिभाषित किया और इसे आठ अंगों में विभाजित किया।
- योगसूत्र को "राजयोग" का आधार माना जाता है।
1. चित्त की वृत्तियों का निरोध:
- "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" (योगसूत्र 1.2)
- योग का अर्थ है मन की चंचलता और विकारों को रोककर स्थिरता प्राप्त करना।
2. आध्यात्मिक ज्ञान:
- आत्मा और ब्रह्म के सत्य को समझना।
3. मोक्ष:
- जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना।
4. सांसारिक दुखों का समाधान:
- योग व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
1. अष्टांग योग (आठ अंग):
महर्षि पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया:
1. यम: नैतिकता के पांच नियम: अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
2. नियम: व्यक्तिगत अनुशासन: शौच (शुद्धता), संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान।
3. आसन: शरीर को स्थिर और स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक मुद्राएँ।
4. प्राणायाम: श्वास और जीवन ऊर्जा का नियंत्रण।
5. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर भीतर की ओर लगाना।
6. धारणा: एकाग्रता, मन को किसी एक वस्तु पर स्थिर करना।
7. ध्यान: ध्यान, मन को पूरी तरह से शांति में लाना।
8. समाधि: परम चेतना की अवस्था, आत्मा और ब्रह्म का एकत्व।
2. कर्म और भक्ति का महत्व:
- योग दर्शन में भक्ति, ज्ञान और कर्म को साधन माना गया है।
3. ईश्वर का स्थान:
- पतंजलि योग दर्शन में ईश्वर को एक विशेष आत्मा के रूप में स्वीकार करते हैं, जो पूर्ण, निष्कलंक और अज्ञान से मुक्त है।
4. चित्त और वृत्तियाँ:
- चित्त की पांच वृत्तियाँ होती हैं: सही ज्ञान, भ्रम, कल्पना, निद्रा, और स्मृति।
- योग का लक्ष्य इन वृत्तियों को नियंत्रित करना है।
5. कर्म और संस्कार:
- योग दर्शन में कर्म और उसके प्रभाव (संस्कार) को समझकर, उन्हें समाप्त करने पर जोर दिया गया है।
1. आसन और प्राणायाम:
- शरीर को स्वस्थ और स्थिर रखना।
2. ध्यान:
- मन को शांत कर, ईश्वर या आत्मा पर ध्यान केंद्रित करना।
3. भक्ति और कर्म योग:
- निस्वार्थ कर्म और भक्ति के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना।
4. नियमित अभ्यास:
- योग का निरंतर अभ्यास व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करता है।
1. सांख्य दर्शन:
- योग दर्शन सांख्य दर्शन के सिद्धांतों पर आधारित है।
- सांख्य प्रकृति और पुरुष का भेद बताता है, और योग उस भेद को व्यावहारिक रूप से अनुभव करने का माध्यम है।
2. वेदांत दर्शन:
- योग और वेदांत का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है।
- योग वेदांत के ज्ञान को साधना के माध्यम से व्यावहारिक बनाता है।
1. आध्यात्मिक लाभ:
- आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव।
2. मानसिक लाभ:
- मन की शांति, एकाग्रता, और सकारात्मकता।
3. शारीरिक लाभ:
- स्वस्थ और स्थिर शरीर।
4. सांसारिक दुखों से मुक्ति:
- योग व्यक्ति को सांसारिक बंधनों और दुखों से मुक्त करता है।
1. योगसूत्र: महर्षि पतंजलि द्वारा रचित।
2. भगवद्गीता: योग के विभिन्न मार्गों (भक्ति, ज्ञान, कर्म, ध्यान) का वर्णन।
3. हठयोग प्रदीपिका: हठयोग का शास्त्रीय ग्रंथ।
4. योग वशिष्ठ: योग और अद्वैत का वर्णन।
1. राजयोग:
- पतंजलि द्वारा वर्णित अष्टांग योग।
2. हठयोग:
- शरीर और मन को संतुलित करने के लिए आसन और प्राणायाम पर जोर।
3. भक्ति योग:
- ईश्वर के प्रति भक्ति के माध्यम से मोक्ष।
4. कर्म योग:
- निस्वार्थ कर्म करते हुए आत्मा की शुद्धि।
5. ज्ञान योग:
- आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान के माध्यम से मोक्ष।
योग दर्शन मन, शरीर और आत्मा को संतुलित कर जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुँचाने का साधन है। यह केवल एक आध्यात्मिक मार्ग नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला भी है। योग दर्शन व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के सत्य से परिचित कराता है और उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर परिपूर्णता प्रदान करता है।
योग का अर्थ
- योग का शाब्दिक अर्थ है "जुड़ना" या "एकता"।
- यह आत्मा और परमात्मा के बीच एकता का माध्यम है।
- योग का उद्देश्य मन, शरीर और आत्मा को संतुलित कर आध्यात्मिक जागरूकता लाना है।
योग दर्शन के प्रवर्तक
- महर्षि पतंजलि योग दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं।
- उन्होंने "योगसूत्र" के माध्यम से योग को परिभाषित किया और इसे आठ अंगों में विभाजित किया।
- योगसूत्र को "राजयोग" का आधार माना जाता है।
योग दर्शन का मुख्य उद्देश्य
1. चित्त की वृत्तियों का निरोध:
- "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" (योगसूत्र 1.2)
- योग का अर्थ है मन की चंचलता और विकारों को रोककर स्थिरता प्राप्त करना।
2. आध्यात्मिक ज्ञान:
- आत्मा और ब्रह्म के सत्य को समझना।
3. मोक्ष:
- जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना।
4. सांसारिक दुखों का समाधान:
- योग व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
योग दर्शन के प्रमुख सिद्धांत
1. अष्टांग योग (आठ अंग):
महर्षि पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया:
1. यम: नैतिकता के पांच नियम: अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
2. नियम: व्यक्तिगत अनुशासन: शौच (शुद्धता), संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान।
3. आसन: शरीर को स्थिर और स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक मुद्राएँ।
4. प्राणायाम: श्वास और जीवन ऊर्जा का नियंत्रण।
5. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर भीतर की ओर लगाना।
6. धारणा: एकाग्रता, मन को किसी एक वस्तु पर स्थिर करना।
7. ध्यान: ध्यान, मन को पूरी तरह से शांति में लाना।
8. समाधि: परम चेतना की अवस्था, आत्मा और ब्रह्म का एकत्व।
2. कर्म और भक्ति का महत्व:
- योग दर्शन में भक्ति, ज्ञान और कर्म को साधन माना गया है।
3. ईश्वर का स्थान:
- पतंजलि योग दर्शन में ईश्वर को एक विशेष आत्मा के रूप में स्वीकार करते हैं, जो पूर्ण, निष्कलंक और अज्ञान से मुक्त है।
4. चित्त और वृत्तियाँ:
- चित्त की पांच वृत्तियाँ होती हैं: सही ज्ञान, भ्रम, कल्पना, निद्रा, और स्मृति।
- योग का लक्ष्य इन वृत्तियों को नियंत्रित करना है।
5. कर्म और संस्कार:
- योग दर्शन में कर्म और उसके प्रभाव (संस्कार) को समझकर, उन्हें समाप्त करने पर जोर दिया गया है।
योग दर्शन का अभ्यास कैसे करें?
1. आसन और प्राणायाम:
- शरीर को स्वस्थ और स्थिर रखना।
2. ध्यान:
- मन को शांत कर, ईश्वर या आत्मा पर ध्यान केंद्रित करना।
3. भक्ति और कर्म योग:
- निस्वार्थ कर्म और भक्ति के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना।
4. नियमित अभ्यास:
- योग का निरंतर अभ्यास व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करता है।
योग दर्शन और अन्य दर्शनों का संबंध
1. सांख्य दर्शन:
- योग दर्शन सांख्य दर्शन के सिद्धांतों पर आधारित है।
- सांख्य प्रकृति और पुरुष का भेद बताता है, और योग उस भेद को व्यावहारिक रूप से अनुभव करने का माध्यम है।
2. वेदांत दर्शन:
- योग और वेदांत का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है।
- योग वेदांत के ज्ञान को साधना के माध्यम से व्यावहारिक बनाता है।
योग दर्शन के लाभ
1. आध्यात्मिक लाभ:
- आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव।
2. मानसिक लाभ:
- मन की शांति, एकाग्रता, और सकारात्मकता।
3. शारीरिक लाभ:
- स्वस्थ और स्थिर शरीर।
4. सांसारिक दुखों से मुक्ति:
- योग व्यक्ति को सांसारिक बंधनों और दुखों से मुक्त करता है।
योग के प्रमुख ग्रंथ
1. योगसूत्र: महर्षि पतंजलि द्वारा रचित।
2. भगवद्गीता: योग के विभिन्न मार्गों (भक्ति, ज्ञान, कर्म, ध्यान) का वर्णन।
3. हठयोग प्रदीपिका: हठयोग का शास्त्रीय ग्रंथ।
4. योग वशिष्ठ: योग और अद्वैत का वर्णन।
योग दर्शन के प्रकार
1. राजयोग:
- पतंजलि द्वारा वर्णित अष्टांग योग।
2. हठयोग:
- शरीर और मन को संतुलित करने के लिए आसन और प्राणायाम पर जोर।
3. भक्ति योग:
- ईश्वर के प्रति भक्ति के माध्यम से मोक्ष।
4. कर्म योग:
- निस्वार्थ कर्म करते हुए आत्मा की शुद्धि।
5. ज्ञान योग:
- आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान के माध्यम से मोक्ष।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि