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सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
क्या पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख कौन-कौन से पौराणिक कथा में होता है?
पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में किया गया है। यह शंख विशेष रूप से भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है और इसके शंखनाद को शक्ति, धर्म, और विजय का प्रतीक माना जाता है। यहां कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएँ हैं जिनमें पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख है:
पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख महाभारत, भागवद गीता, विष्णु पुराण, रामायण, ब्रह्माण्ड पुराण और कुछ अन्य पुराणों में होता है। यह शंख विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है और इसका शंखनाद धर्म, विजय और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह शंख समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था और एक महत्वपूर्ण धार्मिक रत्न है।
- महाभारत में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख भगवान श्री कृष्ण द्वारा युद्ध के प्रारंभ में किया गया था। जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू होने वाला था, तब भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया। इसका उद्देश्य युद्ध की शुरुआत और धर्म की विजय को सूचित करना था।
- भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि यह शंख केवल एक युद्ध का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने का प्रतीक है।
- महाभारत के भीष्म पर्व और धृतराष्ट्र संजय संवाद में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख किया गया है।
- भागवद गीता में भी पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख है। जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देना शुरू किया, उससे पहले उन्होंने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया, जो धर्म युद्ध का प्रारंभ था।
- गीता के पहले अध्याय में भगवान श्री कृष्ण का शंखनाद एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो अर्जुन के मानसिक संघर्ष और युद्ध के संदर्भ में होता है।
- विष्णु पुराण में भी पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख किया गया है। यह शंख भगवान विष्णु के सिद्ध रत्न के रूप में वर्णित है। समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए कई रत्नों में पाञ्चजन्य शंख को विशेष स्थान प्राप्त है।
- इसे भगवान विष्णु का शक्ति का प्रतीक माना गया है, और इस शंख का उपयोग धर्म और सृष्टि की रक्षा के लिए किया गया।
- रामायण में भी पाञ्चजन्य शंख का परोक्ष उल्लेख किया गया है। हालांकि इस शंख का मुख्य रूप से महाभारत और विष्णु पुराण में उल्लेख अधिक है, लेकिन रामायण में भगवान राम द्वारा शंख का प्रयोग युद्ध में शत्रुओं को डराने के लिए किया गया था, जो पाञ्चजन्य शंख के समान प्रतीत होता है।
- ब्रह्माण्ड पुराण में भी पाञ्चजन्य शंख का वर्णन है। इस पुराण में इसे श्री कृष्ण के द्वारा ध्वनित किया गया शंख बताया गया है, जो पूरे ब्रह्मांड में धर्म की विजय और अधर्म की पराजय का प्रतीक था।
- शिव महापुराण में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख तब होता है, जब भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की महिमा की चर्चा होती है। इसे विष्णु के महान रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है।
- कुछ तंत्र शास्त्र और योग ग्रंथों में भी पाञ्चजन्य शंख का आध्यात्मिक और शक्ति के प्रतीक के रूप में उल्लेख किया गया है। इसे दिव्य ध्वनि और सिद्धि का एक माध्यम माना जाता है।
पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख महाभारत, भागवद गीता, विष्णु पुराण, रामायण, ब्रह्माण्ड पुराण और कुछ अन्य पुराणों में होता है। यह शंख विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है और इसका शंखनाद धर्म, विजय और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह शंख समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था और एक महत्वपूर्ण धार्मिक रत्न है।
1. महाभारत:
- महाभारत में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख भगवान श्री कृष्ण द्वारा युद्ध के प्रारंभ में किया गया था। जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू होने वाला था, तब भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया। इसका उद्देश्य युद्ध की शुरुआत और धर्म की विजय को सूचित करना था।
- भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि यह शंख केवल एक युद्ध का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने का प्रतीक है।
- महाभारत के भीष्म पर्व और धृतराष्ट्र संजय संवाद में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख किया गया है।
2. भागवद गीता:
- भागवद गीता में भी पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख है। जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देना शुरू किया, उससे पहले उन्होंने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया, जो धर्म युद्ध का प्रारंभ था।
- गीता के पहले अध्याय में भगवान श्री कृष्ण का शंखनाद एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो अर्जुन के मानसिक संघर्ष और युद्ध के संदर्भ में होता है।
3. विष्णु पुराण:
- विष्णु पुराण में भी पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख किया गया है। यह शंख भगवान विष्णु के सिद्ध रत्न के रूप में वर्णित है। समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए कई रत्नों में पाञ्चजन्य शंख को विशेष स्थान प्राप्त है।
- इसे भगवान विष्णु का शक्ति का प्रतीक माना गया है, और इस शंख का उपयोग धर्म और सृष्टि की रक्षा के लिए किया गया।
4. रामायण:
- रामायण में भी पाञ्चजन्य शंख का परोक्ष उल्लेख किया गया है। हालांकि इस शंख का मुख्य रूप से महाभारत और विष्णु पुराण में उल्लेख अधिक है, लेकिन रामायण में भगवान राम द्वारा शंख का प्रयोग युद्ध में शत्रुओं को डराने के लिए किया गया था, जो पाञ्चजन्य शंख के समान प्रतीत होता है।
5. ब्रह्माण्ड पुराण:
- ब्रह्माण्ड पुराण में भी पाञ्चजन्य शंख का वर्णन है। इस पुराण में इसे श्री कृष्ण के द्वारा ध्वनित किया गया शंख बताया गया है, जो पूरे ब्रह्मांड में धर्म की विजय और अधर्म की पराजय का प्रतीक था।
6. शिव महापुराण:
- शिव महापुराण में पाञ्चजन्य शंख का उल्लेख तब होता है, जब भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की महिमा की चर्चा होती है। इसे विष्णु के महान रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है।
7. कुण्डलिनी योग और तंत्र शास्त्र:
- कुछ तंत्र शास्त्र और योग ग्रंथों में भी पाञ्चजन्य शंख का आध्यात्मिक और शक्ति के प्रतीक के रूप में उल्लेख किया गया है। इसे दिव्य ध्वनि और सिद्धि का एक माध्यम माना जाता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: