शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
भगवान श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग कब और क्यों किया?
भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग महाभारत के युद्ध में धर्म की विजय और अधर्म की पराजय को सुनिश्चित करने के लिए किया था। यह शंख शक्ति, धर्म, और विजय का प्रतीक है, और श्री कृष्ण ने इसे एक विशेष उद्देश्य के तहत बजाया था।
भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग महाभारत युद्ध के प्रारंभ में किया था। यह शंख धर्म की विजय और अधर्म की पराजय का प्रतीक था। श्री कृष्ण ने इस शंख का शंखनाद करके धर्मयुद्ध की शुरुआत की, शत्रुओं में भय का संचार किया और अर्जुन को यह समझाया कि यह युद्ध सत्य और धर्म की रक्षा के लिए हो रहा है। पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद केवल युद्ध का आरंभ नहीं था, बल्कि यह भगवान श्री कृष्ण के दिव्य शक्ति और धर्म के प्रति अडिग विश्वास का प्रतीक भी था।
1. युद्ध की शुरुआत का संकेत:
- भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग महाभारत युद्ध के पहले दिन, यानी धृतराष्ट्र और पांडवों के बीच युद्ध की शुरुआत में किया। जब कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेनाओं के साथ खड़े थे, और युद्ध का समय आ गया था, तब श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया।
- इसका उद्देश्य था कि यह युद्ध का आरंभ करने का प्रतीक बने और यह सुनिश्चित हो कि युद्ध धर्म की रक्षा के लिए हो रहा है। पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि से यह स्पष्ट हो गया कि भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ हैं, और उनके शत्रु कौरवों का अंत अब निश्चित है।
2. धर्म की विजय का प्रतीक:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद केवल युद्ध की शुरुआत का संकेत नहीं था, बल्कि यह धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक था। भगवान श्री कृष्ण ने इस शंख का प्रयोग इस उद्देश्य से किया कि यह शंख सत्य की शक्ति का आह्वान करता है और अधर्म का नाश करता है। यह शंखनाद पांडवों के लिए प्रेरणा और कौरवों के लिए भय का कारण बना।
3. ध्वनि का शत्रुओं पर प्रभाव:
- भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का उद्घोष करके शत्रुओं के दिलों में भय उत्पन्न किया। इस शंख की ध्वनि इतनी प्रबल और दिव्य थी कि यह शत्रुओं के हौसले को तोड़ देती थी। कौरवों के मन में यह भय था कि इस युद्ध में धर्म के पक्ष में भगवान श्री कृष्ण हैं, और उनका पराजय निश्चित है।
4. आध्यात्मिक और नैतिक संदेश:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद एक गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश को भी व्यक्त करता था। भगवान श्री कृष्ण ने यह शंख बजाकर यह बताया कि यह युद्ध केवल भौतिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष है, जिसमें सत्य और धर्म की विजय होगी।
- इसके माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने की कोशिश की कि धर्मयुद्ध में लड़ना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह एक महान कर्तव्य है।
5. कृष्ण के द्वारा शंखनाद:
- श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद करने के बाद अर्जुन से कहा था कि इस युद्ध में केवल धर्म की विजय होगी और यह युद्ध एक आध्यात्मिक युद्ध है। उन्होंने अर्जुन को यह समझाया कि वह निराश न हों, क्योंकि जो कार्य वह कर रहे हैं, वह भगवान की इच्छा के अनुसार है।
भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग महाभारत युद्ध के प्रारंभ में किया था। यह शंख धर्म की विजय और अधर्म की पराजय का प्रतीक था। श्री कृष्ण ने इस शंख का शंखनाद करके धर्मयुद्ध की शुरुआत की, शत्रुओं में भय का संचार किया और अर्जुन को यह समझाया कि यह युद्ध सत्य और धर्म की रक्षा के लिए हो रहा है। पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद केवल युद्ध का आरंभ नहीं था, बल्कि यह भगवान श्री कृष्ण के दिव्य शक्ति और धर्म के प्रति अडिग विश्वास का प्रतीक भी था।
पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग:
1. युद्ध की शुरुआत का संकेत:
- भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का प्रयोग महाभारत युद्ध के पहले दिन, यानी धृतराष्ट्र और पांडवों के बीच युद्ध की शुरुआत में किया। जब कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेनाओं के साथ खड़े थे, और युद्ध का समय आ गया था, तब श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद किया।
- इसका उद्देश्य था कि यह युद्ध का आरंभ करने का प्रतीक बने और यह सुनिश्चित हो कि युद्ध धर्म की रक्षा के लिए हो रहा है। पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि से यह स्पष्ट हो गया कि भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ हैं, और उनके शत्रु कौरवों का अंत अब निश्चित है।
2. धर्म की विजय का प्रतीक:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद केवल युद्ध की शुरुआत का संकेत नहीं था, बल्कि यह धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक था। भगवान श्री कृष्ण ने इस शंख का प्रयोग इस उद्देश्य से किया कि यह शंख सत्य की शक्ति का आह्वान करता है और अधर्म का नाश करता है। यह शंखनाद पांडवों के लिए प्रेरणा और कौरवों के लिए भय का कारण बना।
3. ध्वनि का शत्रुओं पर प्रभाव:
- भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का उद्घोष करके शत्रुओं के दिलों में भय उत्पन्न किया। इस शंख की ध्वनि इतनी प्रबल और दिव्य थी कि यह शत्रुओं के हौसले को तोड़ देती थी। कौरवों के मन में यह भय था कि इस युद्ध में धर्म के पक्ष में भगवान श्री कृष्ण हैं, और उनका पराजय निश्चित है।
4. आध्यात्मिक और नैतिक संदेश:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद एक गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश को भी व्यक्त करता था। भगवान श्री कृष्ण ने यह शंख बजाकर यह बताया कि यह युद्ध केवल भौतिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष है, जिसमें सत्य और धर्म की विजय होगी।
- इसके माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने की कोशिश की कि धर्मयुद्ध में लड़ना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह एक महान कर्तव्य है।
5. कृष्ण के द्वारा शंखनाद:
- श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद करने के बाद अर्जुन से कहा था कि इस युद्ध में केवल धर्म की विजय होगी और यह युद्ध एक आध्यात्मिक युद्ध है। उन्होंने अर्जुन को यह समझाया कि वह निराश न हों, क्योंकि जो कार्य वह कर रहे हैं, वह भगवान की इच्छा के अनुसार है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: