शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
सनातन धर्म की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?
सनातन धर्म की उत्पत्ति का कोई एक निश्चित समय या तिथि नहीं है, क्योंकि यह विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है और इसका विकास मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही हुआ है। इसे "सनातन" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "शाश्वत" या "अनादि"। इसका तात्पर्य यह है कि यह धर्म सृष्टि के प्रारंभ से ही विद्यमान है।
सनातन धर्म की उत्पत्ति के चरण:
वैदिक काल (लगभग 1500 ईसा पूर्व या उससे पहले):
- सनातन धर्म की जड़ें वैदिक काल में मानी जाती हैं।
- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इस काल की प्रमुख धार्मिक ग्रंथ हैं।
- इस काल में प्रकृति की पूजा, यज्ञ, और देवताओं जैसे अग्नि, इंद्र, वरुण की आराधना मुख्य थी।
पुराणों और उपनिषदों का काल:
- उपनिषदों ने सनातन धर्म को दार्शनिक आधार दिया। इसमें आत्मा (आत्मा), ब्रह्म (सृष्टिकर्ता), और मोक्ष (मुक्ति) की अवधारणा प्रमुख है।
- पुराणों ने धर्म को अधिक व्यापक और जनमान्य बनाया। देवी-देवताओं, अवतारों, और पौराणिक कथाओं का वर्णन पुराणों में मिलता है।
स्मृतियों और धार्मिक ग्रंथों का विकास:
- महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों ने धर्म को कर्म, भक्ति, और धर्मपालन के माध्यम से समझाया।
- भगवद्गीता, जो महाभारत का एक हिस्सा है, सनातन धर्म के दर्शन और नैतिकता का सार है।
धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था:
- सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) और चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) का उल्लेख है।
- वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) के माध्यम से समाज को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया।
उत्पत्ति के स्रोत:
सनातन धर्म का मूल स्रोत प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ मानव का गहरा संबंध है। यह धर्म किसी एक व्यक्ति, अवतार, या समय पर आधारित नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों में विकसित हुआ है।
मुख्य सिद्धांत:
एकता में अनेकता: ईश्वर को एक मानते हुए अनेक रूपों में पूजा।
कर्म और पुनर्जन्म: कर्म के सिद्धांत के अनुसार जीवन चक्र चलता है।
मोक्ष का उद्देश्य: जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति।
प्रकृति की पूजा: सूर्य, चंद्र, नदियाँ, वृक्ष, और अन्य प्राकृतिक तत्वों की आराधना।
वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण:
सनातन धर्म न केवल धार्मिक है, बल्कि यह विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भी योगदान देता है। योग और आयुर्वेद इसके प्रमाण हैं।
इस प्रकार, सनातन धर्म मानवता की सबसे पुरानी और शाश्वत परंपरा है, जो आज भी प्रासंगिक है। इसका विकास एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में हुआ, जो मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व को प्राथमिकता देता है।
सनातन धर्म की उत्पत्ति के चरण:
वैदिक काल (लगभग 1500 ईसा पूर्व या उससे पहले):
- सनातन धर्म की जड़ें वैदिक काल में मानी जाती हैं।
- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इस काल की प्रमुख धार्मिक ग्रंथ हैं।
- इस काल में प्रकृति की पूजा, यज्ञ, और देवताओं जैसे अग्नि, इंद्र, वरुण की आराधना मुख्य थी।
पुराणों और उपनिषदों का काल:
- उपनिषदों ने सनातन धर्म को दार्शनिक आधार दिया। इसमें आत्मा (आत्मा), ब्रह्म (सृष्टिकर्ता), और मोक्ष (मुक्ति) की अवधारणा प्रमुख है।
- पुराणों ने धर्म को अधिक व्यापक और जनमान्य बनाया। देवी-देवताओं, अवतारों, और पौराणिक कथाओं का वर्णन पुराणों में मिलता है।
स्मृतियों और धार्मिक ग्रंथों का विकास:
- महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों ने धर्म को कर्म, भक्ति, और धर्मपालन के माध्यम से समझाया।
- भगवद्गीता, जो महाभारत का एक हिस्सा है, सनातन धर्म के दर्शन और नैतिकता का सार है।
धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था:
- सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) और चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) का उल्लेख है।
- वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) के माध्यम से समाज को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया।
उत्पत्ति के स्रोत:
सनातन धर्म का मूल स्रोत प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ मानव का गहरा संबंध है। यह धर्म किसी एक व्यक्ति, अवतार, या समय पर आधारित नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों में विकसित हुआ है।
मुख्य सिद्धांत:
एकता में अनेकता: ईश्वर को एक मानते हुए अनेक रूपों में पूजा।
कर्म और पुनर्जन्म: कर्म के सिद्धांत के अनुसार जीवन चक्र चलता है।
मोक्ष का उद्देश्य: जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति।
प्रकृति की पूजा: सूर्य, चंद्र, नदियाँ, वृक्ष, और अन्य प्राकृतिक तत्वों की आराधना।
वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण:
सनातन धर्म न केवल धार्मिक है, बल्कि यह विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भी योगदान देता है। योग और आयुर्वेद इसके प्रमाण हैं।
इस प्रकार, सनातन धर्म मानवता की सबसे पुरानी और शाश्वत परंपरा है, जो आज भी प्रासंगिक है। इसका विकास एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में हुआ, जो मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व को प्राथमिकता देता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि