शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
देव दिवाली का त्यौहार कब और कैसे मनाया जाता है?
देव दिवाली का पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार दिवाली के 15 दिन बाद आता है और मुख्यतः वाराणसी के गंगा घाटों पर बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था।
देव दिवाली एक ऐसा पर्व है जो धार्मिकता, भक्ति, और सांस्कृतिक सौंदर्य का संगम प्रस्तुत करता है। इसकी दिव्यता और उत्सव का रूप विशेष रूप से वाराणसी में देखने लायक होता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे मनाने से आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान भी होता है।
- पंचांग के अनुसार: यह पर्व हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
- ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार: यह आमतौर पर नवंबर या दिसंबर में आता है।
- गंगा नदी के घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं।
- दीपक जलाने का उद्देश्य भगवान शिव और गंगा की आराधना करना और देवताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है।
- वाराणसी में यह दृश्य विशेष रूप से मनमोहक होता है, जहां हर घाट पर दीपों की लहरें दिखाई देती हैं।
- इस दिन गंगा आरती को विशेष महत्व दिया जाता है।
- गंगा तट पर भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से आरती की जाती है, जिसमें दीप, पुष्प, और धूप के साथ भगवान शिव और गंगा मां की आराधना होती है।
- गंगा आरती के साथ भजन और मंत्रोच्चार गंगा घाट के वातावरण को पवित्र बना देते हैं।
- इस दिन पवित्र गंगा में स्नान को विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- गंगा स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है।
- भगवान शिव की पूजा: इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।
- त्रिपुरारी हवन: त्रिपुरासुर वध की स्मृति में हवन और अनुष्ठान किए जाते हैं।
- इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान, और दीपदान का विशेष महत्व है।
- जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है।
- वाराणसी और अन्य धार्मिक स्थलों पर संगीत, नृत्य, और भक्ति-गीतों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- रामलीला और शिव कथाओं का मंचन भी इस दिन का विशेष आकर्षण होता है।
- गंगा नदी में नौकायन करते हुए दीपों को प्रवाहित करने की परंपरा है।
- यह दृश्य गंगा नदी के तट पर अद्भुत दिव्यता का अनुभव कराता है।
- वाराणसी (काशी):
वाराणसी में गंगा के सभी घाटों, विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट, पर यह त्योहार मनाया जाता है।
- गंगा तट को रंगोली, फूलों, और दीपों से सजाया जाता है।
- हजारों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर त्योहार की दिव्यता का अनुभव करते हैं।
- उज्जैन:
उज्जैन के शिव मंदिरों और घाटों पर भी देव दिवाली बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है।
- हरिद्वार और ऋषिकेश:
इन धार्मिक स्थलों पर भी गंगा आरती और दीपदान का आयोजन होता है।
- लाइट और लेजर शो:
वाराणसी में आधुनिक रोशनी और लेजर शो के माध्यम से गंगा तट पर त्योहार को और आकर्षक बनाया जाता है।
- पर्यटकों का बड़ा आकर्षण:
देश-विदेश से लाखों लोग देव दिवाली का अद्भुत नजारा देखने के लिए वाराणसी आते हैं।
- यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
- इसे मनाने का उद्देश्य भगवान शिव की महिमा का स्मरण करना और देवताओं की कृपा प्राप्त करना है।
- यह पर्व व्यक्ति को धर्म, भक्ति, और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
देव दिवाली एक ऐसा पर्व है जो धार्मिकता, भक्ति, और सांस्कृतिक सौंदर्य का संगम प्रस्तुत करता है। इसकी दिव्यता और उत्सव का रूप विशेष रूप से वाराणसी में देखने लायक होता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे मनाने से आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान भी होता है।
देव दिवाली का समय
- पंचांग के अनुसार: यह पर्व हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
- ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार: यह आमतौर पर नवंबर या दिसंबर में आता है।
देव दिवाली कैसे मनाई जाती है?
1. दीपों का प्रज्वलन (दीपदान)
- गंगा नदी के घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं।
- दीपक जलाने का उद्देश्य भगवान शिव और गंगा की आराधना करना और देवताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है।
- वाराणसी में यह दृश्य विशेष रूप से मनमोहक होता है, जहां हर घाट पर दीपों की लहरें दिखाई देती हैं।
2. गंगा आरती
- इस दिन गंगा आरती को विशेष महत्व दिया जाता है।
- गंगा तट पर भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से आरती की जाती है, जिसमें दीप, पुष्प, और धूप के साथ भगवान शिव और गंगा मां की आराधना होती है।
- गंगा आरती के साथ भजन और मंत्रोच्चार गंगा घाट के वातावरण को पवित्र बना देते हैं।
3. गंगा स्नान
- इस दिन पवित्र गंगा में स्नान को विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- गंगा स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है।
4. पूजा और हवन
- भगवान शिव की पूजा: इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।
- त्रिपुरारी हवन: त्रिपुरासुर वध की स्मृति में हवन और अनुष्ठान किए जाते हैं।
5. दान और पुण्य
- इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान, और दीपदान का विशेष महत्व है।
- जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है।
6. सांस्कृतिक आयोजन
- वाराणसी और अन्य धार्मिक स्थलों पर संगीत, नृत्य, और भक्ति-गीतों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- रामलीला और शिव कथाओं का मंचन भी इस दिन का विशेष आकर्षण होता है।
7. नौका उत्सव
- गंगा नदी में नौकायन करते हुए दीपों को प्रवाहित करने की परंपरा है।
- यह दृश्य गंगा नदी के तट पर अद्भुत दिव्यता का अनुभव कराता है।
देव दिवाली का विशेष आयोजन स्थल
- वाराणसी (काशी):
वाराणसी में गंगा के सभी घाटों, विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट, पर यह त्योहार मनाया जाता है।
- गंगा तट को रंगोली, फूलों, और दीपों से सजाया जाता है।
- हजारों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर त्योहार की दिव्यता का अनुभव करते हैं।
- उज्जैन:
उज्जैन के शिव मंदिरों और घाटों पर भी देव दिवाली बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है।
- हरिद्वार और ऋषिकेश:
इन धार्मिक स्थलों पर भी गंगा आरती और दीपदान का आयोजन होता है।
आधुनिक तरीकों से उत्सव
- लाइट और लेजर शो:
वाराणसी में आधुनिक रोशनी और लेजर शो के माध्यम से गंगा तट पर त्योहार को और आकर्षक बनाया जाता है।
- पर्यटकों का बड़ा आकर्षण:
देश-विदेश से लाखों लोग देव दिवाली का अद्भुत नजारा देखने के लिए वाराणसी आते हैं।
देव दिवाली का उद्देश्य और महत्व
- यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
- इसे मनाने का उद्देश्य भगवान शिव की महिमा का स्मरण करना और देवताओं की कृपा प्राप्त करना है।
- यह पर्व व्यक्ति को धर्म, भक्ति, और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि