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सत्य से बड़ा तो ईश्‍वर भी नहीं

सनातन धर्म में वेदांत दर्शन क्या है?

वेदांत दर्शन सनातन धर्म के छह प्रमुख दर्शन शास्त्रों (षड्दर्शन) में से एक है। यह दर्शन वेदों के अंतिम भाग अर्थात उपनिषदों पर आधारित है, इसलिए इसे "वेदांत" (वेदों का अंत) कहा जाता है। वेदांत दर्शन ईश्वर, आत्मा, ब्रह्म, माया और मोक्ष जैसे गहन दार्शनिक विषयों पर विचार करता है।

वेदांत दर्शन सनातन धर्म का सर्वोच्च दार्शनिक सिद्धांत है, जो आत्मा और ब्रह्म के सत्य को प्रकट करता है। यह दर्शन व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है और जीवन के अंतिम सत्य की ओर प्रेरित करता है। वेदांत न केवल व्यक्तिगत आत्मा की मुक्ति के बारे में है, बल्कि यह संपूर्ण ब्रह्मांडीय चेतना को समझने का प्रयास भी है।

वेदांत का अर्थ


वेदांत = वेद + अंत


- वेदों का अंतिम और सर्वोच्च ज्ञान।
- इसका उद्देश्य आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के रहस्यों को समझाना है।
- वेदांत को उपनिषद दर्शन भी कहा जाता है।

वेदांत दर्शन का मुख्य उद्देश्य


1. आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान:


- आत्मा और ब्रह्म की एकता को जानना।
- अहम् ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूँ) और तत्त्वमसि (तू वही है) जैसे महावाक्यों पर जोर।

2. माया का समझ:


- संसार एक माया (भ्रम) है, और आत्मा अजर-अमर है।

3. मोक्ष की प्राप्ति:


- जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और परम आनंद की प्राप्ति।


वेदांत दर्शन के तीन प्रमुख मत


वेदांत दर्शन में ब्रह्म, आत्मा और सृष्टि के संबंध में विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें तीन मुख्य मत हैं:

1. अद्वैत वेदांत (अद्वैतवाद):
प्रवर्तक: आदि शंकराचार्य।
मुख्य विचार:
ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा में कोई भेद नहीं है।
सारा संसार माया है।
मोक्ष का अर्थ है ब्रह्म के साथ आत्मा का एकत्व।
महावाक्य: "अहम् ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ)।

2. विशिष्टाद्वैत वेदांत (विशिष्ट अद्वैतवाद):
प्रवर्तक: रामानुजाचार्य।
मुख्य विचार:
ब्रह्म एक है, लेकिन आत्मा और संसार उसकी विशिष्टता (अभिन्न अंग) हैं।
आत्मा और ब्रह्म का संबंध शरीर और आत्मा की तरह है।
भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
महावाक्य: "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" (यह सब ब्रह्म है)।

3. द्वैत वेदांत (द्वैतवाद):
प्रवर्तक: माधवाचार्य।
मुख्य विचार:
आत्मा और ब्रह्म भिन्न हैं।
आत्मा ब्रह्म की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त कर सकती है।
भक्ति और ईश्वर की कृपा पर जोर।
महावाक्य: "हरि: सर्वम्" (हरि ही सबकुछ है)।


वेदांत दर्शन के प्रमुख विषय


ब्रह्म:
ब्रह्मांड की परम शक्ति और सर्वोच्च सत्य।
यह निराकार, अनंत, और शाश्वत है।

आत्मा:
प्रत्येक जीव में निवास करने वाली शाश्वत चेतना।
आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं (अद्वैत मत में)।

माया:
संसार और इसकी वस्तुएं माया हैं, जो आत्मा और ब्रह्म के बीच भ्रम उत्पन्न करती हैं।

मोक्ष:
मोक्ष का अर्थ है माया से मुक्ति और ब्रह्म के साथ एकत्व।
यह आत्मा की पूर्ण स्वतंत्रता और शाश्वत आनंद की अवस्था है।

सृष्टि:
सृष्टि ब्रह्म की शक्ति से उत्पन्न होती है और माया के कारण वास्तविक प्रतीत होती है।


वेदांत दर्शन का अभ्यास कैसे करें?


वेदांत दर्शन को समझने और अनुभव करने के लिए तीन प्रमुख मार्ग सुझाए गए हैं:
श्रवण (सुनना):
वेदों, उपनिषदों और वेदांत ग्रंथों को सुनना।

मनन (विचार):
सुने गए ज्ञान पर चिंतन और विश्लेषण।

निदिध्यासन (ध्यान):
ध्यान और आत्मा के प्रति जागरूकता के माध्यम से ब्रह्म का अनुभव।


वेदांत दर्शन के प्रमुख ग्रंथ


उपनिषद:
वेदों के अंतिम भाग और वेदांत दर्शन का मूल स्रोत।
108 उपनिषद मुख्य माने जाते हैं।

भगवद्गीता:
गीता में वेदांत दर्शन के सिद्धांत स्पष्ट रूप से बताए गए हैं।
योग, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष का मार्ग।

ब्रह्मसूत्र:
वेदांत दर्शन का दार्शनिक ग्रंथ।
इसका संकलन महर्षि बादरायण ने किया।

आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, और माधवाचार्य के भाष्य:
इन आचार्यों ने उपनिषद, गीता, और ब्रह्मसूत्र पर विस्तार से भाष्य लिखे।


वेदांत दर्शन का महत्व


आध्यात्मिक जागरूकता:
यह आत्मा और ब्रह्म के बारे में गहन ज्ञान प्रदान करता है।

जीवन का अंतिम लक्ष्य:
मोक्ष को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मानता है।

सत्य का ज्ञान:
माया, कर्म, और ईश्वर के बारे में सत्य को समझने में मदद करता है।

एकता में विविधता:
यह सिखाता है कि सभी जीव एक ही ब्रह्म के अंश हैं।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)

आज का पञ्चाङ्ग

दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
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विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि