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हिंदू मंदिरों की स्थापत्य शैलियाँ समय के साथ कैसे विकसित हुई हैं?
हिंदू मंदिरों की स्थापत्य शैलियाँ समय के साथ विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक प्रभावों के कारण विकसित हुई हैं। इनका विकास भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री, स्थानीय परंपराओं, और शासकों के संरक्षण के आधार पर हुआ। यह विकास चरणबद्ध और बहुआयामी रहा है, जो भारतीय सभ्यता के बदलते चरणों को दर्शाता है।
हिंदू मंदिरों की स्थापत्य शैलियाँ समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती और विकसित होती रहीं।
- प्रारंभिक काल में सरलता और प्रकृति से जुड़ाव था।
- मध्यकाल में भव्यता और नक्काशी पर जोर दिया गया।
- आधुनिक युग में तकनीक और पर्यटन के अनुरूप मंदिर बनाए जा रहे हैं।
इन शैलियों का विकास भारतीय समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है और यह परंपरा भविष्य में भी नए रूपों में जारी रहेगी।
- यह दौर मंदिर निर्माण के आरंभिक चरण का था।
- मंदिर साधारण संरचनाओं में बने होते थे, जैसे कच्चे पत्थरों, लकड़ी या ईंटों का उपयोग।
- इनका उद्देश्य पूजा और ध्यान के लिए एक सरल स्थान प्रदान करना था।
- मौर्य काल में बने स्तूप और गुफा मंदिर (अजंता और एलोरा की प्रारंभिक गुफाएँ)।
- प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग ध्यान और साधना के लिए किया गया।
- गुप्त काल को हिंदू मंदिर स्थापत्य का स्वर्ण युग माना जाता है।
- मंदिर स्थायी सामग्री (पत्थर और ईंट) से बनने लगे।
- गर्भगृह (जहां मूर्ति स्थापित होती है) और शिखर (ऊपर की संरचना) का आरंभ हुआ।
- शैली साधारण और सौंदर्यपूर्ण थी।
- दशावतार मंदिर (देवगढ़, उत्तर प्रदेश)।
- भीतरगाँव का मंदिर (उत्तर प्रदेश)।
- शिखर का पिरामिडनुमा स्वरूप स्पष्ट हुआ।
- बाहरी दीवारों पर मूर्तिकला का समृद्ध प्रयोग।
- मंदिर के चारों ओर मंडप और सभा मंडप का निर्माण।
- प्रमुख मंदिर:
- खजुराहो मंदिर समूह (मध्य प्रदेश)।
- कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा)।
- मंदिर परिसर में गोपुरम (प्रवेश द्वार) का आगमन।
- गर्भगृह के ऊपर विमान (शिखर) पिरामिडनुमा बनाया गया।
- विस्तृत मंडप, जलाशय, और भव्य नक्काशी की परंपरा शुरू हुई।
- प्रमुख मंदिर:
- बृहदेश्वर मंदिर (तमिलनाडु)।
- श्रीरंगम मंदिर (त्रिची)।
- नागरा और द्रविड़ शैलियों का संयोजन।
- खंभों और दीवारों पर जटिल नक्काशी।
- तारे के आकार का आधार।
- प्रमुख मंदिर:
- बेलूर और हलेबिड मंदिर (कर्नाटक)।
- मुस्लिम आक्रमणों के कारण मंदिर निर्माण में बाधा आई।
- कई मंदिर नष्ट कर दिए गए या मस्जिदों में परिवर्तित किए गए।
- इस समय नए मंदिर निर्माण की तुलना में पुराने मंदिरों के संरक्षण और पुनर्निर्माण पर अधिक ध्यान दिया गया।
- मंदिर निर्माण में इस्लामी स्थापत्य के कुछ तत्व जैसे गुंबद और मेहराब का सीमित उपयोग हुआ।
- गोविंद देव मंदिर (वृंदावन)।
- दक्षिण भारत में भव्य मंदिर निर्माण का पुनर्जागरण।
- गोपुरम और मंडप को और अधिक भव्यता मिली।
- स्तंभों पर जटिल नक्काशी और विशाल परिसर।
- प्रमुख मंदिर:
- विरुपाक्ष मंदिर (हम्पी)।
- सरल और पारंपरिक मंदिर, जो धार्मिक पुनरुत्थान का प्रतीक थे।
- पत्थरों और ईंटों का उपयोग।
- प्रमुख मंदिर:
- शनि शिंगणापुर मंदिर।
- आधुनिक तकनीक और सामग्रियों का उपयोग।
- परंपरागत शैलियों के साथ आधुनिक डिज़ाइन का समावेश।
- मंदिरों में धर्म और पर्यटन का संतुलन।
- प्रमुख उदाहरण:
- अक्षरधाम मंदिर (दिल्ली)।
- इस्कॉन मंदिर (विश्वभर में)।
- चिन्मय विश्व मंदिर।
हिंदू मंदिरों की स्थापत्य शैलियाँ समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती और विकसित होती रहीं।
- प्रारंभिक काल में सरलता और प्रकृति से जुड़ाव था।
- मध्यकाल में भव्यता और नक्काशी पर जोर दिया गया।
- आधुनिक युग में तकनीक और पर्यटन के अनुरूप मंदिर बनाए जा रहे हैं।
इन शैलियों का विकास भारतीय समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है और यह परंपरा भविष्य में भी नए रूपों में जारी रहेगी।
1. प्रारंभिक काल (300 ईसा पूर्व - 300 ईस्वी)
विशेषताएँ:
- यह दौर मंदिर निर्माण के आरंभिक चरण का था।
- मंदिर साधारण संरचनाओं में बने होते थे, जैसे कच्चे पत्थरों, लकड़ी या ईंटों का उपयोग।
- इनका उद्देश्य पूजा और ध्यान के लिए एक सरल स्थान प्रदान करना था।
उदाहरण:
- मौर्य काल में बने स्तूप और गुफा मंदिर (अजंता और एलोरा की प्रारंभिक गुफाएँ)।
- प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग ध्यान और साधना के लिए किया गया।
2. गुप्त काल (300 - 600 ईस्वी)
विशेषताएँ:
- गुप्त काल को हिंदू मंदिर स्थापत्य का स्वर्ण युग माना जाता है।
- मंदिर स्थायी सामग्री (पत्थर और ईंट) से बनने लगे।
- गर्भगृह (जहां मूर्ति स्थापित होती है) और शिखर (ऊपर की संरचना) का आरंभ हुआ।
- शैली साधारण और सौंदर्यपूर्ण थी।
उदाहरण:
- दशावतार मंदिर (देवगढ़, उत्तर प्रदेश)।
- भीतरगाँव का मंदिर (उत्तर प्रदेश)।
3. प्रारंभिक मध्यकाल (600 - 1200 ईस्वी)
उत्तर भारत: नागरा शैली का विकास
- शिखर का पिरामिडनुमा स्वरूप स्पष्ट हुआ।
- बाहरी दीवारों पर मूर्तिकला का समृद्ध प्रयोग।
- मंदिर के चारों ओर मंडप और सभा मंडप का निर्माण।
- प्रमुख मंदिर:
- खजुराहो मंदिर समूह (मध्य प्रदेश)।
- कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा)।
दक्षिण भारत: द्रविड़ शैली का विकास
- मंदिर परिसर में गोपुरम (प्रवेश द्वार) का आगमन।
- गर्भगृह के ऊपर विमान (शिखर) पिरामिडनुमा बनाया गया।
- विस्तृत मंडप, जलाशय, और भव्य नक्काशी की परंपरा शुरू हुई।
- प्रमुख मंदिर:
- बृहदेश्वर मंदिर (तमिलनाडु)।
- श्रीरंगम मंदिर (त्रिची)।
मध्य भारत: वेसर शैली का उदय
- नागरा और द्रविड़ शैलियों का संयोजन।
- खंभों और दीवारों पर जटिल नक्काशी।
- तारे के आकार का आधार।
- प्रमुख मंदिर:
- बेलूर और हलेबिड मंदिर (कर्नाटक)।
4. मुस्लिम शासन और प्रभाव (1200 - 1800 ईस्वी)
विशेषताएँ:
- मुस्लिम आक्रमणों के कारण मंदिर निर्माण में बाधा आई।
- कई मंदिर नष्ट कर दिए गए या मस्जिदों में परिवर्तित किए गए।
- इस समय नए मंदिर निर्माण की तुलना में पुराने मंदिरों के संरक्षण और पुनर्निर्माण पर अधिक ध्यान दिया गया।
- मंदिर निर्माण में इस्लामी स्थापत्य के कुछ तत्व जैसे गुंबद और मेहराब का सीमित उपयोग हुआ।
प्रमुख उदाहरण:
- गोविंद देव मंदिर (वृंदावन)।
5. मराठा और विजयनगर साम्राज्य का काल (1300 - 1700 ईस्वी)
विजयनगर शैली:
- दक्षिण भारत में भव्य मंदिर निर्माण का पुनर्जागरण।
- गोपुरम और मंडप को और अधिक भव्यता मिली।
- स्तंभों पर जटिल नक्काशी और विशाल परिसर।
- प्रमुख मंदिर:
- विरुपाक्ष मंदिर (हम्पी)।
मराठा शैली:
- सरल और पारंपरिक मंदिर, जो धार्मिक पुनरुत्थान का प्रतीक थे।
- पत्थरों और ईंटों का उपयोग।
- प्रमुख मंदिर:
- शनि शिंगणापुर मंदिर।
6. आधुनिक काल (1800 ईस्वी - वर्तमान)
विशेषताएँ:
- आधुनिक तकनीक और सामग्रियों का उपयोग।
- परंपरागत शैलियों के साथ आधुनिक डिज़ाइन का समावेश।
- मंदिरों में धर्म और पर्यटन का संतुलन।
- प्रमुख उदाहरण:
- अक्षरधाम मंदिर (दिल्ली)।
- इस्कॉन मंदिर (विश्वभर में)।
- चिन्मय विश्व मंदिर।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: