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देव दिवाली से जुड़ी कहानियाँ या पौराणिक कथाएँ कौन सी हैं?
देव दिवाली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ और धार्मिक मान्यताएँ हैं, जो इस दिन के महत्व को स्पष्ट करती हैं। यह दिन मुख्य रूप से भगवान शिव और गंगा माता से जुड़ा हुआ है। देव दिवाली का आयोजन कार्तिक माह की पूर्णिमा को होता है, और इस दिन खासकर भगवान शिव, देवी पार्वती, और गंगा नदी की पूजा का महत्व है।
देव दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन कथाओं में भगवान शिव की महिमा, गंगा के धरती पर आगमन, देवताओं की पूजा और विजय के प्रतीक स्वरूप दीपदान का आयोजन दर्शाया गया है। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान भक्तों के जीवन में पवित्रता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है।
- देव दिवाली से जुड़ी प्रमुख कथा गंगा माता के धरती पर आगमन से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में स्थान दिया।
- कहा जाता है कि गंगा का प्रवाह पृथ्वी पर बहुत ही विकराल था, और उसे नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को समाहित कर लिया था। इस दिन गंगा के धरती पर आगमन की याद में देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से गंगा पूजा और दीपदान का आयोजन किया जाता है। गंगा का आशीर्वाद भक्तों के जीवन में पवित्रता और समृद्धि लाता है।
- देव दिवाली का संबंध भगवान शिव से भी गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था और इस दिन को शिव का दिव्य रूप माना जाता है।
- एक अन्य कथा के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती ने काशी में निवास करने का निर्णय लिया था, और इस दिन को शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खास माना जाता है।
- एक पौराणिक कथा के अनुसार, देव दिवाली के दिन ही देवता काशी में उपस्थित होते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह दिन काशी के धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है, क्योंकि इस दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, और अन्य देवता काशी में भगवान शिव की उपासना करने के लिए एकत्र होते हैं।
- इस दिन की पूजा से यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भगवान शिव का एक प्रमुख अस्तित्व दमरू (घंटी जैसा वाद्य) है, जिसे उन्होंने अपने नृत्य और तांडव के दौरान बजाया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देव दिवाली के दिन दमरू के साथ भगवान शिव का नृत्य हुआ था, जो एक अद्भुत ध्वनि और ऊर्जा का प्रतीक था। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव के दमरू का पूजन किया जाता है, जो जीवन में संगति, सर्वव्यापी ऊर्जा, और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है।
- नरकासुर नामक राक्षस के वध की कथा भी देव दिवाली से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, और इस दिन देवता सिद्धि, शक्ति, और धर्म की विजय की प्रतीक माने जाते हैं। इस विजय के बाद, देवी देवताओं ने दीप जलाए थे ताकि अंधकार को दूर किया जा सके और प्रकाश की ओर मार्गदर्शन हो सके।
- इस तरह, देव दिवाली को देवताओं की विजय के रूप में भी मनाया जाता है, और यह दिन धर्म की जीत और अधर्म के पराजय का प्रतीक है।
- देव दिवाली के दिन महादेव के गंगाधर रूप की पूजा की जाती है, क्योंकि यह दिन गंगा के महादेव की जटाओं में आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कहा जाता है कि गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया था, और इस दिन को खासकर गंगाधर शिव की पूजा करने का दिन माना जाता है।
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, देव दिवाली चंद्रग्रहण के समय हुई एक महत्वपूर्ण घटना को याद करती है, जब चंद्रदेव ने भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अपनी मंदता को दूर किया। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से भक्तों को शांति और समृद्धि मिलती है।
देव दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन कथाओं में भगवान शिव की महिमा, गंगा के धरती पर आगमन, देवताओं की पूजा और विजय के प्रतीक स्वरूप दीपदान का आयोजन दर्शाया गया है। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान भक्तों के जीवन में पवित्रता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है।
1. गंगा के धरती पर आगमन की कथा
- देव दिवाली से जुड़ी प्रमुख कथा गंगा माता के धरती पर आगमन से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में स्थान दिया।
- कहा जाता है कि गंगा का प्रवाह पृथ्वी पर बहुत ही विकराल था, और उसे नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को समाहित कर लिया था। इस दिन गंगा के धरती पर आगमन की याद में देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से गंगा पूजा और दीपदान का आयोजन किया जाता है। गंगा का आशीर्वाद भक्तों के जीवन में पवित्रता और समृद्धि लाता है।
2. भगवान शिव की दिव्यता की कथा
- देव दिवाली का संबंध भगवान शिव से भी गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था और इस दिन को शिव का दिव्य रूप माना जाता है।
- एक अन्य कथा के अनुसार, देव दिवाली के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती ने काशी में निवास करने का निर्णय लिया था, और इस दिन को शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खास माना जाता है।
3. देवताओं का काशी में आगमन
- एक पौराणिक कथा के अनुसार, देव दिवाली के दिन ही देवता काशी में उपस्थित होते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह दिन काशी के धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है, क्योंकि इस दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, और अन्य देवता काशी में भगवान शिव की उपासना करने के लिए एकत्र होते हैं।
- इस दिन की पूजा से यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. दमरू की कथा
- भगवान शिव का एक प्रमुख अस्तित्व दमरू (घंटी जैसा वाद्य) है, जिसे उन्होंने अपने नृत्य और तांडव के दौरान बजाया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देव दिवाली के दिन दमरू के साथ भगवान शिव का नृत्य हुआ था, जो एक अद्भुत ध्वनि और ऊर्जा का प्रतीक था। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव के दमरू का पूजन किया जाता है, जो जीवन में संगति, सर्वव्यापी ऊर्जा, और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है।
5. नरकासुर वध और देवताओं का विजय
- नरकासुर नामक राक्षस के वध की कथा भी देव दिवाली से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, और इस दिन देवता सिद्धि, शक्ति, और धर्म की विजय की प्रतीक माने जाते हैं। इस विजय के बाद, देवी देवताओं ने दीप जलाए थे ताकि अंधकार को दूर किया जा सके और प्रकाश की ओर मार्गदर्शन हो सके।
- इस तरह, देव दिवाली को देवताओं की विजय के रूप में भी मनाया जाता है, और यह दिन धर्म की जीत और अधर्म के पराजय का प्रतीक है।
6. महादेव के गंगाधार रूप की पूजा
- देव दिवाली के दिन महादेव के गंगाधर रूप की पूजा की जाती है, क्योंकि यह दिन गंगा के महादेव की जटाओं में आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कहा जाता है कि गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया था, और इस दिन को खासकर गंगाधर शिव की पूजा करने का दिन माना जाता है।
7. चंद्रग्रहण से जुड़ी कथा
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, देव दिवाली चंद्रग्रहण के समय हुई एक महत्वपूर्ण घटना को याद करती है, जब चंद्रदेव ने भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अपनी मंदता को दूर किया। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से भक्तों को शांति और समृद्धि मिलती है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि