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सत्य से बड़ा तो ईश्‍वर भी नहीं

सनातन धर्म के अनुसार आत्मा क्या है?

सनातन धर्म के अनुसार आत्मा (Soul) अमर, शाश्वत, और ईश्वरीय अंश है। यह प्रत्येक जीवित प्राणी के भीतर निवास करती है और शरीर से परे एक अनंत अस्तित्व रखती है। आत्मा को ब्रह्मांडीय शक्ति का हिस्सा माना गया है, जो मृत्यु के बाद भी नष्ट नहीं होती।


आत्मा का अर्थ और स्वभाव


आत्मा का अर्थ:
"आत्मा" का शाब्दिक अर्थ है "स्वयं।"
यह शुद्ध चेतना और जीवन का मूल आधार है।
आत्मा शरीर, मन, और बुद्धि से परे है।

आत्मा का स्वभाव:
अमरता: आत्मा का न तो जन्म होता है, न ही यह मरती है।
शाश्वतता: आत्मा अनंत है और समय से परे है।
अविनाशी: इसे आग जला नहीं सकती, पानी भिगो नहीं सकता, और हवा सुखा नहीं सकती।
सत-चित-आनंद स्वरूप: आत्मा का स्वभाव सत्य (सत), चेतना (चित), और आनंद (आनंद) से युक्त है।


आत्मा का वर्णन वेदों और भगवद्गीता में


(1) वेदों में आत्मा का वर्णन:
वेदों के अनुसार आत्मा परमात्मा (ब्रह्म) का अंश है।
ऋग्वेद और उपनिषदों में आत्मा को "अहम ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ) के रूप में वर्णित किया गया है।
(2) भगवद्गीता में आत्मा:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा के विषय में बताया:

आत्मा अजर-अमर है:
"न जायते म्रियते वा कदाचिन्।"
आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु।
आत्मा अनश्वर है:
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय।"
जैसे पुराने वस्त्रों को बदलकर नए वस्त्र धारण किए जाते हैं, वैसे ही आत्मा शरीर बदलती है।
आत्मा का स्वरूप:
आत्मा शरीर में रहती है, लेकिन शरीर से परे है।
आत्मा को इंद्रियों से अनुभव नहीं किया जा सकता।


आत्मा और शरीर का संबंध


शरीर और आत्मा:
शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा शाश्वत है।
शरीर आत्मा का वस्त्र मात्र है, जिसे आत्मा जन्म-मरण के चक्र में बदलती रहती है।

पांच शरीर (कोश):
सनातन धर्म के अनुसार आत्मा पाँच आवरणों में रहती है:
अन्नमय कोश: भौतिक शरीर।
प्राणमय कोश: जीवन ऊर्जा।
मनोमय कोश: मन।
विज्ञानमय कोश: बुद्धि।
आनंदमय कोश: आनंद का स्रोत।


आत्मा और पुनर्जन्म


पुनर्जन्म का सिद्धांत:
आत्मा मृत्यु के बाद शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है।
यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं करती।

कर्म और आत्मा:
आत्मा का अगला जन्म उसके कर्मों पर निर्भर करता है।
अच्छे कर्मों से आत्मा उच्चतर लोकों में जाती है, जबकि बुरे कर्म उसे निचले लोकों में ले जाते हैं।


आत्मा और परमात्मा का संबंध


आत्मा परमात्मा का अंश:
सनातन धर्म में आत्मा को परमात्मा (ब्रह्म) का अंश माना गया है।
"तत्वमसि" (तुम वही हो) यह सत्य दर्शाता है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।

आत्मा का लक्ष्य:
आत्मा का अंतिम उद्देश्य है परमात्मा से मिलन, जिसे मोक्ष कहते हैं।
जब आत्मा अपने कर्म और माया (भ्रम) से मुक्त होती है, तब यह परमात्मा में विलीन हो जाती है।


आत्मा का अनुभव कैसे किया जा सकता है?


ध्यान और योग:
ध्यान के माध्यम से आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
ज्ञान योग:
आत्मा और ब्रह्म के सत्य को जानना।
भक्ति योग:
ईश्वर की भक्ति और प्रेम के माध्यम से आत्मा को अनुभव करना।
कर्म योग:
निस्वार्थ कर्म करते हुए आत्मा की शुद्धि।


निष्कर्ष


सनातन धर्म के अनुसार आत्मा हर जीव के भीतर निवास करती है और उसे जीवन प्रदान करती है। यह अनश्वर, शाश्वत और ब्रह्म का अंश है। आत्मा का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना और परमात्मा से मिलन करना है। आत्मा का ज्ञान व्यक्ति को जीवन और मृत्यु के भय से मुक्त कर, शाश्वत शांति और आनंद की ओर ले जाता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)

आज का पञ्चाङ्ग

दिनांक: 2024-12-03
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आज का व्रत त्यौहार: