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सनातन धर्म में सांख्य दर्शन क्या है?
सांख्य दर्शन सनातन धर्म के छह प्रमुख दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक है। यह दर्शन विश्व की उत्पत्ति, प्रकृति और आत्मा (पुरुष) के संबंध को वैज्ञानिक और तर्कसंगत ढंग से समझाने का प्रयास करता है। सांख्य का अर्थ है सांख्य या गणना। यह दर्शन सृष्टि के मूलभूत तत्वों की गिनती (25 तत्वों) के आधार पर ब्रह्मांड के रहस्यों को समझाने की कोशिश करता है।
सांख्य दर्शन सनातन धर्म का एक गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो सृष्टि के मूलभूत तत्वों और उनके पारस्परिक संबंधों को समझाने का प्रयास करता है। यह दर्शन आत्मा (पुरुष) और प्रकृति (प्रकृति) के भेद को स्पष्ट कर व्यक्ति को मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। सांख्य दर्शन यह सिखाता है कि सच्चे ज्ञान और विवेक के माध्यम से जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
1. अर्थ:
- "सांख्य" का अर्थ है "ज्ञान की गणना"।
- यह दर्शन सृष्टि के तत्वों और आत्मा के ज्ञान को तर्क और विवेक के आधार पर प्रस्तुत करता है।
2. प्रवर्तक:
- सांख्य दर्शन के संस्थापक महर्षि कपिल माने जाते हैं।
- उन्होंने "सांख्यसूत्र" नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें इस दर्शन के सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं।
1. मोक्ष प्राप्ति:
- जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त करना और आत्मा का वास्तविक स्वरूप समझना।
2. सृष्टि का विज्ञान:
- सृष्टि के तत्वों और उनके पारस्परिक संबंधों को समझना।
3. आत्मा और प्रकृति का भेद:
- आत्मा (पुरुष) और प्रकृति के बीच भेद को स्पष्ट करना।
1. द्वैतवादी दृष्टिकोण:
- सांख्य दर्शन प्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) को अलग-अलग मानता है।
- प्रकृति जड़ और निर्जीव है, जबकि पुरुष चेतन और शाश्वत है।
2. सृष्टि के 25 तत्व:
- सांख्य दर्शन में सृष्टि को 25 तत्वों में विभाजित किया गया है:
| तत्व | विवरण |
|------|--------|
| 1. पुरुष | चेतन, शाश्वत आत्मा। |
| 2. प्रकृति | जड़ और अव्यक्त सृष्टि का मूल स्रोत। |
| 3. महत (बुद्धि) | सृष्टि का पहला उत्पाद, विवेक शक्ति। |
| 4. अहंकार | "मैं" का भाव, जिससे तीन गुण उत्पन्न होते हैं। |
| 5-9. पंच तन्मात्राएँ | श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद, और गंध। |
| 10-14. पंच ज्ञानेन्द्रियाँ | कान, त्वचा, आंख, जीभ, और नाक। |
| 15-19. पंच कर्मेन्द्रियाँ | वाणी, हाथ, पैर, गुदा, और जननेन्द्रियाँ। |
| 20-24. पंच महाभूत | पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश। |
| 25. चित्त | मन और विचार। |
3. प्रकृति और पुरुष का संबंध:
- प्रकृति जड़ है और पुरुष के साथ संपर्क में आने पर ही सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
- प्रकृति तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) से मिलकर बनी है।
4. त्रिगुण सिद्धांत:
- सत्व: पवित्रता और ज्ञान का गुण।
- रजस: क्रिया और इच्छा का गुण।
- तमस: आलस्य और अज्ञान का गुण।
5. मोक्ष का सिद्धांत:
- मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुरुष को प्रकृति से भिन्न समझना होगा।
- आत्मा जब प्रकृति और उसके गुणों से अलग हो जाती है, तो मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1. प्रकृति (Prakriti):
- यह जड़ है और सृष्टि का मूल स्रोत है।
- इसमें सत्व, रजस, और तमस तीन गुण होते हैं।
- यह परिवर्तनशील है।
2. पुरुष (Purusha):
- यह चेतन तत्व है और प्रकृति से भिन्न है।
- पुरुष निष्क्रिय, शाश्वत, और अविनाशी है।
- यह केवल साक्षी है और सृष्टि में भाग नहीं लेता।
1. ज्ञान का महत्व:
- मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्मा (पुरुष) और प्रकृति के भेद का ज्ञान आवश्यक है।
2. प्रकृति से अलगाव:
- जब आत्मा अपने असली स्वरूप को पहचान लेती है और माया (प्रकृति) के बंधन से मुक्त हो जाती है, तब मोक्ष की प्राप्ति होती है।
3. योग का संबंध:
- सांख्य दर्शन को योग दर्शन का आधार माना जाता है।
- योग के माध्यम से मन और इंद्रियों को शांत कर आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
1. तर्क और विज्ञान पर आधारित:
- यह दर्शन सृष्टि के तत्वों और उनके कार्यों का तार्किक विश्लेषण करता है।
2. आध्यात्मिक जागरूकता:
- यह आत्मा और प्रकृति के सत्य को समझने में मदद करता है।
3. दुखों से मुक्ति:
- यह सिखाता है कि सच्चे ज्ञान के माध्यम से जीवन के दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है।
1. योग दर्शन:
- योग और सांख्य दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं।
- योग, सांख्य के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से लागू करने का तरीका है।
2. वेदांत दर्शन:
- वेदांत और सांख्य दर्शन में कुछ समानताएँ हैं, लेकिन वेदांत ब्रह्म को सर्वोच्च मानता है, जबकि सांख्य प्रकृति और पुरुष को अलग-अलग मानता है।
3. न्याय और वैशेषिक दर्शन:
- सांख्य दर्शन का तर्कवादी दृष्टिकोण न्याय और वैशेषिक से मिलता-जुलता है।
सांख्य दर्शन सनातन धर्म का एक गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो सृष्टि के मूलभूत तत्वों और उनके पारस्परिक संबंधों को समझाने का प्रयास करता है। यह दर्शन आत्मा (पुरुष) और प्रकृति (प्रकृति) के भेद को स्पष्ट कर व्यक्ति को मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। सांख्य दर्शन यह सिखाता है कि सच्चे ज्ञान और विवेक के माध्यम से जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
सांख्य दर्शन का अर्थ और प्रवर्तक
1. अर्थ:
- "सांख्य" का अर्थ है "ज्ञान की गणना"।
- यह दर्शन सृष्टि के तत्वों और आत्मा के ज्ञान को तर्क और विवेक के आधार पर प्रस्तुत करता है।
2. प्रवर्तक:
- सांख्य दर्शन के संस्थापक महर्षि कपिल माने जाते हैं।
- उन्होंने "सांख्यसूत्र" नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें इस दर्शन के सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं।
सांख्य दर्शन का मुख्य उद्देश्य
1. मोक्ष प्राप्ति:
- जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त करना और आत्मा का वास्तविक स्वरूप समझना।
2. सृष्टि का विज्ञान:
- सृष्टि के तत्वों और उनके पारस्परिक संबंधों को समझना।
3. आत्मा और प्रकृति का भेद:
- आत्मा (पुरुष) और प्रकृति के बीच भेद को स्पष्ट करना।
सांख्य दर्शन के मुख्य सिद्धांत
1. द्वैतवादी दृष्टिकोण:
- सांख्य दर्शन प्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) को अलग-अलग मानता है।
- प्रकृति जड़ और निर्जीव है, जबकि पुरुष चेतन और शाश्वत है।
2. सृष्टि के 25 तत्व:
- सांख्य दर्शन में सृष्टि को 25 तत्वों में विभाजित किया गया है:
| तत्व | विवरण |
|------|--------|
| 1. पुरुष | चेतन, शाश्वत आत्मा। |
| 2. प्रकृति | जड़ और अव्यक्त सृष्टि का मूल स्रोत। |
| 3. महत (बुद्धि) | सृष्टि का पहला उत्पाद, विवेक शक्ति। |
| 4. अहंकार | "मैं" का भाव, जिससे तीन गुण उत्पन्न होते हैं। |
| 5-9. पंच तन्मात्राएँ | श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद, और गंध। |
| 10-14. पंच ज्ञानेन्द्रियाँ | कान, त्वचा, आंख, जीभ, और नाक। |
| 15-19. पंच कर्मेन्द्रियाँ | वाणी, हाथ, पैर, गुदा, और जननेन्द्रियाँ। |
| 20-24. पंच महाभूत | पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश। |
| 25. चित्त | मन और विचार। |
3. प्रकृति और पुरुष का संबंध:
- प्रकृति जड़ है और पुरुष के साथ संपर्क में आने पर ही सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
- प्रकृति तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) से मिलकर बनी है।
4. त्रिगुण सिद्धांत:
- सत्व: पवित्रता और ज्ञान का गुण।
- रजस: क्रिया और इच्छा का गुण।
- तमस: आलस्य और अज्ञान का गुण।
5. मोक्ष का सिद्धांत:
- मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुरुष को प्रकृति से भिन्न समझना होगा।
- आत्मा जब प्रकृति और उसके गुणों से अलग हो जाती है, तो मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष
1. प्रकृति (Prakriti):
- यह जड़ है और सृष्टि का मूल स्रोत है।
- इसमें सत्व, रजस, और तमस तीन गुण होते हैं।
- यह परिवर्तनशील है।
2. पुरुष (Purusha):
- यह चेतन तत्व है और प्रकृति से भिन्न है।
- पुरुष निष्क्रिय, शाश्वत, और अविनाशी है।
- यह केवल साक्षी है और सृष्टि में भाग नहीं लेता।
सांख्य दर्शन और मोक्ष का मार्ग
1. ज्ञान का महत्व:
- मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्मा (पुरुष) और प्रकृति के भेद का ज्ञान आवश्यक है।
2. प्रकृति से अलगाव:
- जब आत्मा अपने असली स्वरूप को पहचान लेती है और माया (प्रकृति) के बंधन से मुक्त हो जाती है, तब मोक्ष की प्राप्ति होती है।
3. योग का संबंध:
- सांख्य दर्शन को योग दर्शन का आधार माना जाता है।
- योग के माध्यम से मन और इंद्रियों को शांत कर आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
सांख्य दर्शन का महत्व
1. तर्क और विज्ञान पर आधारित:
- यह दर्शन सृष्टि के तत्वों और उनके कार्यों का तार्किक विश्लेषण करता है।
2. आध्यात्मिक जागरूकता:
- यह आत्मा और प्रकृति के सत्य को समझने में मदद करता है।
3. दुखों से मुक्ति:
- यह सिखाता है कि सच्चे ज्ञान के माध्यम से जीवन के दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है।
सांख्य दर्शन और अन्य दर्शनों से संबंध
1. योग दर्शन:
- योग और सांख्य दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं।
- योग, सांख्य के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से लागू करने का तरीका है।
2. वेदांत दर्शन:
- वेदांत और सांख्य दर्शन में कुछ समानताएँ हैं, लेकिन वेदांत ब्रह्म को सर्वोच्च मानता है, जबकि सांख्य प्रकृति और पुरुष को अलग-अलग मानता है।
3. न्याय और वैशेषिक दर्शन:
- सांख्य दर्शन का तर्कवादी दृष्टिकोण न्याय और वैशेषिक से मिलता-जुलता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
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