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देव दिवाली का धार्मिक महत्व क्या है?

देव दिवाली का धार्मिक महत्व सनातन धर्म के गहरे आध्यात्मिक और पौराणिक संदर्भों में निहित है। यह पर्व देवताओं की दिवाली के रूप में मनाया जाता है और इसे त्रिपुरासुर वध के उपलक्ष्य में देवताओं की ओर से भगवान शिव की आराधना और विजय का उत्सव माना जाता है। इसका धार्मिक महत्व कई स्तरों पर प्रकट होता है:

देव दिवाली का धार्मिक महत्व भगवान शिव की महिमा, त्रिपुरासुर वध की विजय, और गंगा नदी के प्रति श्रद्धा में निहित है। यह पर्व धर्म, भक्ति, और पुण्य का संगम है। इसे मनाने का उद्देश्य न केवल देवताओं को प्रसन्न करना है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करना और जीवन में प्रकाश, ज्ञान, और धर्म का प्रवेश कराना भी है।

1. त्रिपुरासुर वध और शिव की विजय


- पौराणिक कथा: त्रिपुरासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या के बाद ब्रह्मा जी से तीन दुर्ग (स्वर्ण, चांदी, और लोहे के) प्राप्त किए और उन्हें तीनों लोकों में फैलाया। इन दुर्गों ने देवताओं और संसार को आतंकित कर दिया।
- भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का संहार किया और तीनों दुर्गों को भस्म कर दिया। इस विजय को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं।
- देवताओं ने इस विजय को दिवाली के रूप में मनाया, इसलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।

2. भगवान शिव की महिमा


- इस पर्व को भगवान शिव के महान योद्धा और सृष्टि के रक्षक के रूप में पूजा का अवसर माना जाता है।
- गंगा तट पर शिव की आराधना विशेष रूप से वाराणसी में होती है, जो शिव की नगरी के रूप में जानी जाती है।

3. गंगा नदी और त्रिपुरारी पूर्णिमा का संबंध


- गंगा का महत्व: गंगा नदी को पवित्रता और मोक्ष का स्रोत माना गया है। देव दिवाली के दिन गंगा तट पर लाखों दीये जलाने की परंपरा भगवान शिव और गंगा के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है।
- मोक्ष और पुनर्जन्म से मुक्ति: यह पर्व गंगा स्नान, दान, और पूजा के माध्यम से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है।

4. देवताओं का पृथ्वी पर आगमन


- ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवता धरती पर आते हैं और गंगा नदी के तट पर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
- इस दिन की पूजा और दीपदान को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

5. दान और पुण्य का महत्व


- दान और सेवा: इस दिन गंगा स्नान के बाद दान और सेवा का विशेष महत्व है।
- अन्नदान और दीपदान:
- अन्न, वस्त्र, धन, और भोजन का दान करना पुण्य का कार्य है।
- गंगा तट पर दीपदान व्यक्ति के जीवन में ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है।

6. ज्योतिषीय महत्व


- कार्तिक पूर्णिमा को चंद्रमा का पूर्ण प्रकाश (पूर्णिमा) और सूर्य-चंद्रमा का अद्भुत संतुलन माना जाता है।
- इस समय पूजा और ध्यान करने से मानसिक और आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।

7. यज्ञ और अनुष्ठानों का महत्व


- त्रिपुरारी पूजा: इस दिन त्रिपुरासुर के वध की स्मृति में यज्ञ और हवन किए जाते हैं।
- गंगा आरती: वाराणसी में इस दिन गंगा आरती का विशेष आयोजन होता है, जिसे देखने और भाग लेने से व्यक्ति को आध्यात्मिक संतोष और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

8. जीवन और प्रकाश का प्रतीक


- देव दिवाली पर दीप जलाने की परंपरा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह आध्यात्मिकता, ज्ञान, और धर्म के प्रति व्यक्ति की निष्ठा को दर्शाता है।
- यह पर्व यह संदेश देता है कि जैसे भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर संसार को बचाया, वैसे ही हर व्यक्ति को अपने भीतर के अज्ञान और अहंकार को मिटाकर दिव्यता की ओर बढ़ना चाहिए।

9. आध्यात्मिक शुद्धिकरण का पर्व


- गंगा में स्नान, उपवास, और ध्यान करने से व्यक्ति अपने कर्मों का परिशोधन कर सकता है।
- यह पर्व भक्तों के लिए ध्यान और भक्ति में लीन होकर भगवान शिव और देवताओं की कृपा प्राप्त करने का अवसर है।

10. सामूहिक पूजा और भक्ति


- देव दिवाली पर गंगा तट पर सामूहिक रूप से पूजा और दीपदान करने की परंपरा सामूहिक भक्ति और धार्मिक एकता का प्रतीक है।
- यह पर्व समाज को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)

आज का पञ्चाङ्ग

दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
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शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: