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सनातन धर्म में महिलाओं का क्या स्थान है?
सनातन धर्म में महिलाओं का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण और सम्मानजनक रहा है। वेदों और पुराणों में महिलाओं को सम्मानित स्थान दिया गया है, और उन्हें समान रूप से आध्यात्मिक, सामाजिक, और पारिवारिक अधिकार दिए गए हैं। हालांकि, समय के साथ विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों के कारण कुछ स्थानों पर महिलाओं के अधिकारों में कमी आई, लेकिन सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों में महिलाओं को एक सम्मानजनक और उच्च स्थान दिया गया है।
सनातन धर्म में महिलाओं को अत्यंत सम्मानित स्थान दिया गया है, चाहे वह धार्मिक, सामाजिक, या पारिवारिक जीवन हो। उनके कर्तव्यों के साथ-साथ उन्हें आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने का अधिकार प्राप्त था। आधुनिक समय में महिलाओं के अधिकारों में और सुधार हुआ है, और अब वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से भाग ले रही हैं।
1. ऋग्वेद में महिलाओं का उच्च स्थान:
- ऋग्वेद में कई स्त्री ऋषियों का उल्लेख है, जैसे लोपामुद्र, गार्गी, अपाला, विजया। ये महिलाएं ज्ञान, भक्ति और वेदों के अध्ययन में सक्रिय थीं।
- "वेदों का ज्ञान ग्रहण करने का अधिकार" महिलाओं को भी था, जैसा कि गार्गी और मैत्रेयी के उदाहरणों से स्पष्ट होता है।
2. श्रीमद्भगवद्गीता में महिलाओं का सम्मान:
- भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि "जो व्यक्ति मुझे श्रद्धा और भक्ति से worship करता है, वह न केवल पुरुषों बल्कि महिलाएं भी मुझसे जुड़ सकती हैं।"
- गीता में श्री कृष्ण ने यह बताया कि भगवान का दर्शन और ज्ञान प्राप्त करने में कोई भेदभाव नहीं है, और सभी पुरुष और महिलाएं समान रूप से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
3. मनुस्मृति और महिलाओं का स्थान:
- मनुस्मृति में महिलाओं को सम्मानित स्थान दिया गया था। इसके अनुसार, घर में मां, पत्नी और बहन को सम्मान देना आवश्यक है।
- मनुस्मृति में यह भी कहा गया है कि "जहां महिला का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं"।
4. उपनिषद में महिलाओं का स्थान:
- मैत्रेयी और विचित्रवीर्या जैसी विदुषी महिलाएं उपनिषदों में आईं, जिन्होंने ज्ञान प्राप्ति और ध्यान में विशेष योगदान दिया।
1. माता का सम्मान:
- सनातन धर्म में मां का स्थान सर्वोच्च माना गया है। उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है। जैसे "जन्मभूमि" और "गृह लक्ष्मी" के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
- "मातृ देवो भव" का सूत्र यह बताता है कि मां को देवता के समान सम्मान देना चाहिए।
2. पतिव्रता धर्म:
- सनातन धर्म में पत्नी को घर की लक्ष्मी माना जाता है। पत्नी का कर्तव्य पति के साथ सद्गति की ओर चलना और परिवार को संतुलित बनाए रखना है।
3. पारिवारिक अधिकार:
- महिलाएं परिवार के पालन-पोषण और देखभाल में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। वे गृहिणी, शिक्षिका, मां के रूप में परिवार की नींव होती हैं।
1. देवी पूजा:
- सनातन धर्म में देवी पूजा का विशेष स्थान है। सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, पार्वती जैसी प्रमुख देवियां हैं जिन्हें पूजा जाता है।
- इन देवियों को शक्ति, बुद्धि, धन, और समृद्धि की प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
2. आध्यात्मिक उन्नति में महिलाएं:
- महिलाओं को भी योग, ध्यान और भक्ति के क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त थे। कई संत और साधिकाएं, जैसे आदिशक्ति की पूजा करने वाली महिलाएं, जिन्होंने ध्यान और साधना द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किया।
1. अधिकार:
- सनातन धर्म में महिलाओं को शास्त्रों, यज्ञों, पूजा-अर्चना, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अधिकार था।
- महिलाएं धर्म, शिक्षा और साधना के मामले में भी बराबरी की अधिकारिणी मानी जाती हैं।
2. कर्तव्य:
- गृहस्थ जीवन में महिला का कर्तव्य परिवार के पालन-पोषण और संतुलन बनाए रखना था।
- महिलाओं का धार्मिक कर्तव्य भी था, जिसमें पवित्रता, सत्य बोलना, और आचार-व्यवहार की मर्यादा बनाए रखना शामिल था।
1. स्त्री का सम्मान:
- महिलाओं को हमेशा उच्च सम्मान के साथ देखा गया था। वे घर के ही नहीं, समाज के भी अभिन्न अंग मानी जाती थीं।
- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" का शाब्दिक अर्थ है कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है।
2. समानता का सिद्धांत:
- सनातन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार, सभी आत्माएं समान हैं, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं। यह सिद्धांत जीवन के हर क्षेत्र में समान अवसरों की ओर इंगीत करता है।
- वर्तमान में, महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, राजनीति, और अन्य क्षेत्रों में समान अधिकार प्राप्त हैं।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद और अन्य सामाजिक सुधारकों ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें समाज में समान स्थान दिलाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
सनातन धर्म में महिलाओं को अत्यंत सम्मानित स्थान दिया गया है, चाहे वह धार्मिक, सामाजिक, या पारिवारिक जीवन हो। उनके कर्तव्यों के साथ-साथ उन्हें आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने का अधिकार प्राप्त था। आधुनिक समय में महिलाओं के अधिकारों में और सुधार हुआ है, और अब वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से भाग ले रही हैं।
वेदों और शास्त्रों में महिलाओं का स्थान
1. ऋग्वेद में महिलाओं का उच्च स्थान:
- ऋग्वेद में कई स्त्री ऋषियों का उल्लेख है, जैसे लोपामुद्र, गार्गी, अपाला, विजया। ये महिलाएं ज्ञान, भक्ति और वेदों के अध्ययन में सक्रिय थीं।
- "वेदों का ज्ञान ग्रहण करने का अधिकार" महिलाओं को भी था, जैसा कि गार्गी और मैत्रेयी के उदाहरणों से स्पष्ट होता है।
2. श्रीमद्भगवद्गीता में महिलाओं का सम्मान:
- भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि "जो व्यक्ति मुझे श्रद्धा और भक्ति से worship करता है, वह न केवल पुरुषों बल्कि महिलाएं भी मुझसे जुड़ सकती हैं।"
- गीता में श्री कृष्ण ने यह बताया कि भगवान का दर्शन और ज्ञान प्राप्त करने में कोई भेदभाव नहीं है, और सभी पुरुष और महिलाएं समान रूप से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
3. मनुस्मृति और महिलाओं का स्थान:
- मनुस्मृति में महिलाओं को सम्मानित स्थान दिया गया था। इसके अनुसार, घर में मां, पत्नी और बहन को सम्मान देना आवश्यक है।
- मनुस्मृति में यह भी कहा गया है कि "जहां महिला का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं"।
4. उपनिषद में महिलाओं का स्थान:
- मैत्रेयी और विचित्रवीर्या जैसी विदुषी महिलाएं उपनिषदों में आईं, जिन्होंने ज्ञान प्राप्ति और ध्यान में विशेष योगदान दिया।
पारिवारिक जीवन में महिलाओं का स्थान
1. माता का सम्मान:
- सनातन धर्म में मां का स्थान सर्वोच्च माना गया है। उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है। जैसे "जन्मभूमि" और "गृह लक्ष्मी" के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
- "मातृ देवो भव" का सूत्र यह बताता है कि मां को देवता के समान सम्मान देना चाहिए।
2. पतिव्रता धर्म:
- सनातन धर्म में पत्नी को घर की लक्ष्मी माना जाता है। पत्नी का कर्तव्य पति के साथ सद्गति की ओर चलना और परिवार को संतुलित बनाए रखना है।
3. पारिवारिक अधिकार:
- महिलाएं परिवार के पालन-पोषण और देखभाल में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। वे गृहिणी, शिक्षिका, मां के रूप में परिवार की नींव होती हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से महिलाओं का स्थान
1. देवी पूजा:
- सनातन धर्म में देवी पूजा का विशेष स्थान है। सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, पार्वती जैसी प्रमुख देवियां हैं जिन्हें पूजा जाता है।
- इन देवियों को शक्ति, बुद्धि, धन, और समृद्धि की प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
2. आध्यात्मिक उन्नति में महिलाएं:
- महिलाओं को भी योग, ध्यान और भक्ति के क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त थे। कई संत और साधिकाएं, जैसे आदिशक्ति की पूजा करने वाली महिलाएं, जिन्होंने ध्यान और साधना द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किया।
महिलाओं के अधिकार और कर्तव्य
1. अधिकार:
- सनातन धर्म में महिलाओं को शास्त्रों, यज्ञों, पूजा-अर्चना, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने का अधिकार था।
- महिलाएं धर्म, शिक्षा और साधना के मामले में भी बराबरी की अधिकारिणी मानी जाती हैं।
2. कर्तव्य:
- गृहस्थ जीवन में महिला का कर्तव्य परिवार के पालन-पोषण और संतुलन बनाए रखना था।
- महिलाओं का धार्मिक कर्तव्य भी था, जिसमें पवित्रता, सत्य बोलना, और आचार-व्यवहार की मर्यादा बनाए रखना शामिल था।
समाज में महिलाओं का सम्मान
1. स्त्री का सम्मान:
- महिलाओं को हमेशा उच्च सम्मान के साथ देखा गया था। वे घर के ही नहीं, समाज के भी अभिन्न अंग मानी जाती थीं।
- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" का शाब्दिक अर्थ है कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है।
2. समानता का सिद्धांत:
- सनातन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार, सभी आत्माएं समान हैं, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं। यह सिद्धांत जीवन के हर क्षेत्र में समान अवसरों की ओर इंगीत करता है।
आधुनिक समय में महिलाओं का स्थान
- वर्तमान में, महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, राजनीति, और अन्य क्षेत्रों में समान अधिकार प्राप्त हैं।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद और अन्य सामाजिक सुधारकों ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें समाज में समान स्थान दिलाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: