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सनातन धर्म में मीमांसा दर्शन क्या है?

मीमांसा दर्शन सनातन धर्म के छह प्रमुख दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक है। यह वेदों के अनुष्ठानों, कर्मकांडों, और धर्म के गूढ़ सिद्धांतों का विश्लेषण करता है। मीमांसा का अर्थ है "गहन विचार" या "चिंतन।" इसे दो भागों में विभाजित किया गया है: पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा।

मीमांसा दर्शन वेदों के कर्मकांडों और धर्म के नियमों का तर्कपूर्ण विश्लेषण करता है। यह दर्शन सिखाता है कि वेद शाश्वत हैं और कर्मकांडों का पालन जीवन का मुख्य उद्देश्य है। मीमांसा धर्म, कर्म, और मोक्ष के सिद्धांतों को स्पष्ट करता है और व्यक्ति को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है।

मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य


- वेदों के अर्थ और उद्देश्य की व्याख्या।
- धार्मिक कर्तव्यों और कर्मकांडों की महत्ता को समझना।
- मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्म (कर्तव्य पालन) का महत्व।

मीमांसा दर्शन के दो प्रकार


1. पूर्व मीमांसा (कर्म मीमांसा):
- रचनाकार: महर्षि जैमिनि।
- यह दर्शन मुख्यतः यज्ञों, अनुष्ठानों, और कर्मकांडों पर केंद्रित है।
- वेदों के कर्मकांडों के पालन द्वारा धर्म की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
- मुख्य ग्रंथ: मीमांसा सूत्र।

2. उत्तर मीमांसा (वेदांत):
- रचनाकार: महर्षि बादरायण।
- यह दर्शन वेदों के अंतिम भाग (उपनिषदों) पर आधारित है।
- मुख्यतः ज्ञान, आत्मा, और ब्रह्म के संबंध को समझाता है।
- मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान को प्राथमिकता देता है।


पूर्व मीमांसा दर्शन के सिद्धांत


1. वेद अपौरुषेय हैं:
- वेदों को किसी मानव ने नहीं बनाया, वे शाश्वत और दिव्य हैं।
- वेदों के मंत्रों और कर्मकांडों का पालन धर्म है।

2. कर्म का महत्व:
- कर्म (यज्ञ, अनुष्ठान) जीवन का आधार है।
- कर्मकांडों का पालन धर्म और मोक्ष की ओर ले जाता है।

3. धर्म का अर्थ:
- धर्म को वेदों के अनुसार कर्मकांडों के पालन के रूप में परिभाषित किया गया है।

4. फल सिद्धांत:
- कर्मों का फल निश्चित है।
- यज्ञ और अनुष्ठान द्वारा व्यक्ति इच्छित फल प्राप्त कर सकता है।

5. श्रुति और स्मृति का महत्व:
- वेद (श्रुति) और शास्त्रों (स्मृति) का अनुसरण धर्म का प्रमुख आधार है।

6. धर्म और अधर्म का ज्ञान:
- धर्म का ज्ञान वेदों के अध्ययन और उनके अनुपालन से होता है।
- अधर्म (पाप) वेद-विरुद्ध आचरण है।

मीमांसा दर्शन में प्रमुख विषय


1. वाक्यार्थ:
- वेदों के मंत्रों और सूत्रों का गहन विश्लेषण।
- उनके वास्तविक अर्थ और उद्देश्य को समझना।

2. यज्ञ और अनुष्ठान:
- वेदों में वर्णित विभिन्न यज्ञों और उनके महत्व को स्पष्ट करना।
- उदाहरण: अग्निहोत्र, सोमयज्ञ।

3. कर्म और ज्ञान:
- पूर्व मीमांसा में कर्म को प्राथमिकता दी गई है।
- ज्ञान को उत्तर मीमांसा (वेदांत) में प्राथमिकता दी गई है।

4. अपौरुषेयता का सिद्धांत:
- वेद शाश्वत और अनादि हैं।
- वेदों के नियमों को मानव ने नहीं बनाया।

5. श्रुति का स्थान:
- श्रुति (वेद) धर्म का सर्वोच्च प्रमाण है।

मीमांसा दर्शन और ईश्वर का स्थान


- पूर्व मीमांसा:
- ईश्वर के अस्तित्व पर सीधा जोर नहीं दिया गया।
- कर्मकांडों को ही सर्वोपरि माना गया है।
- उत्तर मीमांसा (वेदांत):
- ईश्वर को जगत का कारण और मोक्ष का दाता माना गया है।

मीमांसा दर्शन के लाभ और महत्व


1. धर्म का मार्गदर्शन:
- यह दर्शन धर्म के पालन और उसके महत्व को समझाता है।
- धार्मिक अनुष्ठानों के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं का वर्णन करता है।

2. कर्म की महत्ता:
- जीवन में कर्म (कर्तव्यों) का महत्व सिखाता है।
- यह सिखाता है कि अच्छे कर्मों से व्यक्ति इच्छित फल प्राप्त कर सकता है।

3. तर्क और चिंतन:
- वेदों और कर्मकांडों के पीछे के तर्क को समझने में मदद करता है।

4. आध्यात्मिक उत्थान:
- कर्मकांडों और वेदों के अध्ययन द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

मीमांसा दर्शन का अन्य दर्शनों से संबंध


1. न्याय दर्शन:
- न्याय और मीमांसा दोनों ही प्रमाण और तर्क पर आधारित हैं।

2. वेदांत दर्शन:
- वेदांत (उत्तर मीमांसा) और मीमांसा (पूर्व मीमांसा) एक-दूसरे के पूरक हैं।
- उत्तर मीमांसा ज्ञान को प्राथमिकता देती है, जबकि पूर्व मीमांसा कर्म को।

3. योग दर्शन:
- योग दर्शन और मीमांसा दोनों ही व्यक्ति को आत्मा और मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)

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