शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
सनातन धर्म में गुरु का क्या महत्व है?
सनातन धर्म में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु को ज्ञान, साधना, और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर के समान पूज्य माना गया है, क्योंकि गुरु ही व्यक्ति को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। यह मान्यता इस वाक्य में स्पष्ट होती है:
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।
यहां गुरु को ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और महेश (विनाशक) के रूप में वर्णित किया गया है, जो व्यक्ति को सृष्टि, जीवन, और मोक्ष के सत्य को समझने में सहायता करते हैं।
सनातन धर्म में गुरु को जीवन का मार्गदर्शक, प्रेरक, और रक्षक माना गया है। वे व्यक्ति को अज्ञान, अहंकार, और भ्रम से मुक्त कराते हैं और उसे सत्य, धर्म, और ईश्वर के साथ जोड़ते हैं। गुरु के बिना जीवन अधूरा और मार्गदर्शन के बिना भटकाव से भरा होता है। इसलिए सनातन धर्म में गुरु को अनमोल स्थान दिया गया है और उनकी कृपा को जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति माना गया है।
- गुरु ही वह माध्यम हैं जो व्यक्ति को अध्यात्म, धर्मशास्त्र, और आध्यात्मिक साधना का ज्ञान प्रदान करते हैं।
- वे वेदों, उपनिषदों, और शास्त्रों का सही अर्थ समझाते हैं।
- गुरु से ही व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के संबंध की गहन समझ प्राप्त होती है।
- सनातन धर्म में अज्ञान को सभी कष्टों का मूल माना गया है। गुरु व्यक्ति को इस अज्ञान के अंधकार से निकालते हैं और सत्य (ज्ञान) के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
- यह गुरु के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं है।
- गुरु व्यक्ति को भक्ति, ज्ञान, और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
- वे मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने के लिए साधना का सही मार्ग दिखाते हैं।
- गुरु व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा (कुंडलिनी) को जागृत करने और उसे ईश्वर के साथ जोड़ने में सहायक होते हैं।
- गुरु-शिष्य परंपरा सनातन धर्म की नींव है।
- शिष्य गुरु से केवल शिक्षा नहीं ग्रहण करता, बल्कि उनके जीवन मूल्यों, व्यवहार, और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा से भी प्रेरणा लेता है।
- यह संबंध विश्वास, श्रद्धा, और समर्पण पर आधारित होता है।
- गुरु व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक मार्ग पर चलने में सहायता करते हैं, बल्कि वे धर्म के नियमों का पालन करते हुए समाज में उचित आचरण का मार्ग भी दिखाते हैं।
- वे समाज में धर्म और नैतिकता के प्रचारक होते हैं।
- गुरु व्यक्ति के भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें जागृत करने में मदद करते हैं।
- वे कठिनाइयों में व्यक्ति को प्रेरणा और धैर्य प्रदान करते हैं।
- महाभारत: अर्जुन को भगवान कृष्ण (जो उनके गुरु भी थे) ने गीता का उपदेश दिया, जिससे अर्जुन ने धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ समझा।
- उपनिषद: इनमें गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति का वर्णन है।
- रामायण: भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र से शिक्षा प्राप्त की।
- गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है।
- यह दिन महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और सनातन धर्म को संरक्षित किया।
- सनातन धर्म में कहा गया है:
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।"
यह दिखाता है कि गुरु ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं।
- गुरु न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि वे व्यक्ति को जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।
- वे शिष्य के भीतर सद्गुणों, जैसे कि विनम्रता, सहनशीलता, और करुणा का विकास करते हैं।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।
यहां गुरु को ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और महेश (विनाशक) के रूप में वर्णित किया गया है, जो व्यक्ति को सृष्टि, जीवन, और मोक्ष के सत्य को समझने में सहायता करते हैं।
सनातन धर्म में गुरु को जीवन का मार्गदर्शक, प्रेरक, और रक्षक माना गया है। वे व्यक्ति को अज्ञान, अहंकार, और भ्रम से मुक्त कराते हैं और उसे सत्य, धर्म, और ईश्वर के साथ जोड़ते हैं। गुरु के बिना जीवन अधूरा और मार्गदर्शन के बिना भटकाव से भरा होता है। इसलिए सनातन धर्म में गुरु को अनमोल स्थान दिया गया है और उनकी कृपा को जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति माना गया है।
गुरु के महत्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझते हैं:
1. ज्ञान और शिक्षा के वाहक
- गुरु ही वह माध्यम हैं जो व्यक्ति को अध्यात्म, धर्मशास्त्र, और आध्यात्मिक साधना का ज्ञान प्रदान करते हैं।
- वे वेदों, उपनिषदों, और शास्त्रों का सही अर्थ समझाते हैं।
- गुरु से ही व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के संबंध की गहन समझ प्राप्त होती है।
2. अज्ञान से ज्ञान की ओर मार्गदर्शन
- सनातन धर्म में अज्ञान को सभी कष्टों का मूल माना गया है। गुरु व्यक्ति को इस अज्ञान के अंधकार से निकालते हैं और सत्य (ज्ञान) के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
- यह गुरु के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं है।
3. आध्यात्मिक उत्थान और मोक्ष का मार्ग
- गुरु व्यक्ति को भक्ति, ज्ञान, और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
- वे मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने के लिए साधना का सही मार्ग दिखाते हैं।
- गुरु व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा (कुंडलिनी) को जागृत करने और उसे ईश्वर के साथ जोड़ने में सहायक होते हैं।
4. शिष्य और गुरु का संबंध
- गुरु-शिष्य परंपरा सनातन धर्म की नींव है।
- शिष्य गुरु से केवल शिक्षा नहीं ग्रहण करता, बल्कि उनके जीवन मूल्यों, व्यवहार, और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा से भी प्रेरणा लेता है।
- यह संबंध विश्वास, श्रद्धा, और समर्पण पर आधारित होता है।
5. धार्मिक और सामाजिक मार्गदर्शन
- गुरु व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक मार्ग पर चलने में सहायता करते हैं, बल्कि वे धर्म के नियमों का पालन करते हुए समाज में उचित आचरण का मार्ग भी दिखाते हैं।
- वे समाज में धर्म और नैतिकता के प्रचारक होते हैं।
6. प्रेरणा और आत्मविश्वास का स्रोत
- गुरु व्यक्ति के भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें जागृत करने में मदद करते हैं।
- वे कठिनाइयों में व्यक्ति को प्रेरणा और धैर्य प्रदान करते हैं।
7. शास्त्रों में गुरु का महत्व
- महाभारत: अर्जुन को भगवान कृष्ण (जो उनके गुरु भी थे) ने गीता का उपदेश दिया, जिससे अर्जुन ने धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ समझा।
- उपनिषद: इनमें गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति का वर्णन है।
- रामायण: भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र से शिक्षा प्राप्त की।
8. गुरु पूर्णिमा का महत्व
- गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है।
- यह दिन महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और सनातन धर्म को संरक्षित किया।
9. गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर
- सनातन धर्म में कहा गया है:
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।"
यह दिखाता है कि गुरु ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं।
10. गुरु की भूमिका जीवन में
- गुरु न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि वे व्यक्ति को जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।
- वे शिष्य के भीतर सद्गुणों, जैसे कि विनम्रता, सहनशीलता, और करुणा का विकास करते हैं।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: