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बनारस में देव दिवाली का विशेष आयोजन कैसे होता है?

बनारस (वाराणसी) में देव दिवाली का आयोजन अत्यधिक भव्यता, श्रद्धा और सांस्कृतिक समृद्धि के साथ किया जाता है। यह पर्व यहां के गंगा घाटों पर विशेष रूप से मनाया जाता है और इसे गंगा महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। वाराणसी की देव दिवाली, जो देवताओं की दिवाली मानी जाती है, दुनियाभर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा आकर्षण है।

वाराणसी में देव दिवाली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह पर्व गंगा के घाटों, शिव की पूजा, और सामूहिक भक्ति का ऐसा रूप है, जो अद्वितीय और दैवीय अनुभव प्रदान करता है। देव दिवाली के आयोजन में श्रद्धा, कला, और भक्ति का जो संगम होता है, वह वाराणसी को एक विशेष पहचान देता है।

बनारस में देव दिवाली का विशेष आयोजन


1. गंगा घाटों पर दीपों का अद्भुत प्रकाश


- दीपदान की भव्यता:
- वाराणसी के सभी प्रमुख घाटों, जैसे दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, और मानमंदिर घाट, को दीपों से सजाया जाता है।
- लाखों दीयों से सजा गंगा तट ऐसा लगता है मानो सितारे धरती पर उतर आए हों।
- स्थानीय निवासी और श्रद्धालु घाटों पर दीप जलाकर भगवान शिव, गंगा, और देवताओं को समर्पित करते हैं।

- दीप प्रवाह:
- गंगा नदी में तैरते हुए दीप प्रवाहित किए जाते हैं, जिससे नदी का दृश्य और अधिक दिव्य हो जाता है।

2. गंगा आरती का दिव्य आयोजन


- दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती देव दिवाली के दिन विशेष रूप से आकर्षक होती है।
- इस दिन आरती में अधिक श्रद्धालु और संत शामिल होते हैं।
- शंख, घंटियों, और दीपों के साथ की जाने वाली आरती का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है और भक्तों में एक दिव्य ऊर्जा का संचार करता है।
- आरती के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार और भक्ति संगीत गंगा घाटों के वातावरण को पवित्र बना देता है।

3. रंगोली और सजावट


- गंगा के किनारे और घाटों को फूलों और रंगोली से सजाया जाता है।
- सजावट में स्थानीय कला और संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन होता है।
- रंग-बिरंगे दीपकों और तोरणद्वारों से हर घाट पर उत्सव का माहौल बनता है।

4. सांस्कृतिक कार्यक्रम


- गंगा महोत्सव:
- देव दिवाली के अवसर पर गंगा महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें संगीत, नृत्य, और नाटक का प्रदर्शन किया जाता है।
- शास्त्रीय संगीत और लोकनृत्य के कार्यक्रमों में बनारस घराने की कला देखने को मिलती है।
- यह आयोजन वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर करता है।

- शिव और गंगा से जुड़ी कथाओं का मंचन:
- त्रिपुरासुर वध, गंगा अवतरण, और अन्य पौराणिक कथाओं का नाटकीय प्रदर्शन किया जाता है।

5. धार्मिक अनुष्ठान


- गंगा स्नान और पूजन:
- देव दिवाली के दिन हजारों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं, जिसे मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- घाटों पर भगवान शिव, गंगा, और अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है।

- हवन और यज्ञ:
- घाटों पर हवन और यज्ञ आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भक्तगण भाग लेते हैं।

6. नौका विहार और दीपोत्सव का अवलोकन


- देव दिवाली के दिन गंगा में नौका विहार (बोट राइड) का आनंद लिया जाता है।
- नावों से घाटों पर जलते दीपों और गंगा में तैरते दीपकों का दृश्य अलौकिक प्रतीत होता है।
- श्रद्धालु और पर्यटक बोट पर बैठकर पूरे आयोजन का अवलोकन करते हैं, जो एक अविस्मरणीय अनुभव होता है।

7. आतिशबाजी


- रात में घाटों पर आतिशबाजी का आयोजन होता है।
- रंग-बिरंगी आतिशबाजी से आसमान रोशन हो जाता है, जो उत्सव को और भव्य बनाता है।
- यह पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।

8. संतों और महंतों का विशेष प्रवचन


- वाराणसी के विभिन्न घाटों पर संत और महंतों द्वारा प्रवचन और भक्ति-योग सत्र आयोजित किए जाते हैं।
- इन प्रवचनों में धर्म, मोक्ष, और भगवान शिव की महिमा के विषय पर चर्चा होती है।

देव दिवाली का आध्यात्मिक महत्व बनारस में


- वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है, और देव दिवाली पर यह नगरी भक्ति, श्रद्धा, और उत्सव का केंद्र बन जाती है।
- गंगा नदी, जो स्वयं मोक्षदायिनी है, इस दिन और अधिक पवित्र मानी जाती है।
- वाराणसी में देव दिवाली मनाना धार्मिक रूप से अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, क्योंकि यह स्थान आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण


- देश-विदेश से लाखों पर्यटक देव दिवाली के दौरान वाराणसी आते हैं।
- घाटों पर हो रही भव्यता, गंगा आरती, और दीपों के दृश्य उनकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देते हैं।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)

आज का पञ्चाङ्ग

दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि