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पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति कैसे हुई?
पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जो समुद्र मंथन से संबंधित है। यह शंख न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे ध्वनि और शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।
पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, और इसे भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण से जोड़ा गया है। यह शंख पाँच तत्वों का प्रतीक है, और इसके द्वारा किया गया शंखनाद शक्ति, विजय और धर्म का प्रतीक है। पाञ्चजन्य शंख को धर्म, शांति, और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में पूजा जाता है।
1. समुद्र मंथन:
- देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें अमृत की प्राप्ति के लिए दोनों पक्षों ने मिलकर समुद्र को मंथना शुरू किया। इस मंथन से कई रत्न और अमूल्य चीजें उत्पन्न हुईं, जिनमें से एक था पाञ्चजन्य शंख।
2. शंख का उत्पत्ति:
- समुद्र मंथन के दौरान कई रत्नों के साथ-साथ पाञ्चजन्य शंख भी प्रकट हुआ। यह शंख विशेष रूप से भगवान विष्णु के लिए उत्पन्न हुआ था, और इसका नाम "पाञ्चजन्य" रखा गया, क्योंकि यह शंख पाँच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड की रचना के मूल तत्व हैं।
3. भगवान विष्णु और शंख:
- भगवान विष्णु ने इस शंख को अपने पास रखा और इसे ध्वनि और शक्ति का प्रतीक माना। इस शंख का नाम "पाञ्चजन्य" इस कारण रखा गया क्योंकि इसका उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, और यह रत्नों के बीच एक महत्वपूर्ण रत्न था।
- पाञ्चजन्य शंख का उपयोग भगवान विष्णु ने अपने विभिन्न अवतारों में, विशेष रूप से श्री कृष्ण के अवतार में किया। महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का उद्घोष किया, जो युद्ध की शुरुआत का संकेत था और इससे शत्रुओं के हृदय में भय का संचार हुआ।
4. शंख और गंगा:
- एक अन्य कथा के अनुसार, पाञ्चजन्य शंख का संबंध गंगा नदी से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि जब गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में समाहित किया, तो उसी समय गंगा के जल से पाञ्चजन्य शंख का निर्माण हुआ था। इस शंख को समर्पित पूजा और इसके उद्घोष से दुनिया में धर्म और शांति का संदेश फैलता है।
5. शंख का महत्व:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद विशेष रूप से धर्म, विजय, और रक्षक का प्रतीक माना जाता है। महाभारत के युद्ध में जब भगवान श्री कृष्ण ने इस शंख का उद्घोष किया, तो वह युद्ध की शुरुआत का संकेत था और यह विजय की ओर मार्गदर्शन करता था।
पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, और इसे भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण से जोड़ा गया है। यह शंख पाँच तत्वों का प्रतीक है, और इसके द्वारा किया गया शंखनाद शक्ति, विजय और धर्म का प्रतीक है। पाञ्चजन्य शंख को धर्म, शांति, और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में पूजा जाता है।
पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति की कथा:
1. समुद्र मंथन:
- देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें अमृत की प्राप्ति के लिए दोनों पक्षों ने मिलकर समुद्र को मंथना शुरू किया। इस मंथन से कई रत्न और अमूल्य चीजें उत्पन्न हुईं, जिनमें से एक था पाञ्चजन्य शंख।
2. शंख का उत्पत्ति:
- समुद्र मंथन के दौरान कई रत्नों के साथ-साथ पाञ्चजन्य शंख भी प्रकट हुआ। यह शंख विशेष रूप से भगवान विष्णु के लिए उत्पन्न हुआ था, और इसका नाम "पाञ्चजन्य" रखा गया, क्योंकि यह शंख पाँच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड की रचना के मूल तत्व हैं।
3. भगवान विष्णु और शंख:
- भगवान विष्णु ने इस शंख को अपने पास रखा और इसे ध्वनि और शक्ति का प्रतीक माना। इस शंख का नाम "पाञ्चजन्य" इस कारण रखा गया क्योंकि इसका उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, और यह रत्नों के बीच एक महत्वपूर्ण रत्न था।
- पाञ्चजन्य शंख का उपयोग भगवान विष्णु ने अपने विभिन्न अवतारों में, विशेष रूप से श्री कृष्ण के अवतार में किया। महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख का उद्घोष किया, जो युद्ध की शुरुआत का संकेत था और इससे शत्रुओं के हृदय में भय का संचार हुआ।
4. शंख और गंगा:
- एक अन्य कथा के अनुसार, पाञ्चजन्य शंख का संबंध गंगा नदी से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि जब गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में समाहित किया, तो उसी समय गंगा के जल से पाञ्चजन्य शंख का निर्माण हुआ था। इस शंख को समर्पित पूजा और इसके उद्घोष से दुनिया में धर्म और शांति का संदेश फैलता है।
5. शंख का महत्व:
- पाञ्चजन्य शंख का शंखनाद विशेष रूप से धर्म, विजय, और रक्षक का प्रतीक माना जाता है। महाभारत के युद्ध में जब भगवान श्री कृष्ण ने इस शंख का उद्घोष किया, तो वह युद्ध की शुरुआत का संकेत था और यह विजय की ओर मार्गदर्शन करता था।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: