शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
तंजावुर के ब्रहदेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्व क्या है?
तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजराजेश्वर मंदिर या "बड़ा मंदिर" भी कहा जाता है, भारतीय स्थापत्य, कला और धार्मिक धरोहर का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर शहर में स्थित है और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसका निर्माण चोल वंश के महान राजा राजराज चोल प्रथम (985-1014 ई.) ने 1010 ई. में करवाया था।
इस मंदिर का निर्माण शिव भगवान को समर्पित है और यह द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसे भारत के महानतम मंदिरों में गिना जाता है। नीचे इस मंदिर के इतिहास, महत्व, और अन्य पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है:
तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति का एक अद्भुत रत्न है। यह न केवल चोल साम्राज्य की शक्ति और समृद्धि को दर्शाता है, बल्कि भारतीय स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं की अद्वितीयता को भी उजागर करता है। आज, यह मंदिर न केवल धार्मिक भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत और विश्व धरोहर का हिस्सा बनकर नई पीढ़ियों को हमारी समृद्ध संस्कृति और इतिहास से जोड़ता है।
1. निर्माण का कालखंड:
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल साम्राज्य की समृद्धि और शक्ति के प्रतीक के रूप में किया गया था।
- इसका निर्माण 1003 से 1010 ई. के बीच हुआ और इसे राजा राजराज चोल प्रथम ने अपनी सैन्य उपलब्धियों और धार्मिक भक्ति को दर्शाने के लिए बनवाया।
2. राजराज चोल प्रथम का योगदान:
- इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर राजा की शक्ति और शिव भगवान के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाता है।
- राजा ने इस मंदिर के लिए बड़ी मात्रा में धन का दान दिया और यहां पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए स्थायी व्यवस्थाएँ कीं।
3. चोल साम्राज्य की कलात्मकता:
- मंदिर का निर्माण चोल वंश की वास्तुकला और मूर्तिकला की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता है।
- यह चोल साम्राज्य के दौरान मंदिर स्थापत्य के चरम उत्कर्ष को दर्शाता है।
4. भविष्य में योगदान:
- चोल साम्राज्य के पतन के बाद, इस मंदिर का रख-रखाव नायक और मराठा राजाओं ने किया।
- मराठा शासन के दौरान इसे बृहदेश्वर मंदिर कहा जाने लगा।
1. द्रविड़ स्थापत्य कला का शिखर:
- यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना हुआ है, जिसमें ऊंचे गोपुरम (प्रवेश द्वार) और विस्तृत प्रांगण होते हैं।
- इसका मुख्य विमान (शिखर) 66 मीटर ऊंचा है और इसे ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है। यह भारत के सबसे ऊंचे मंदिर शिखरों में से एक है।
2. शिखर पर कुम्भम्:
- मंदिर के शिखर पर एक विशाल कुम्भम् (कलश) स्थित है, जिसका वजन लगभग 80 टन है। इसे एक ही ग्रेनाइट पत्थर से तराशा गया है और यह इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है।
- किंवदंती है कि इसे ऊपर चढ़ाने के लिए 6 किमी लंबा एक रैंप बनाया गया था।
3. मूर्ति और नक्काशी:
- गर्भगृह में स्थित शिवलिंग विश्व के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
- मंदिर की दीवारों पर चोल वंश के कालखंड के चित्र, नृत्य मुद्राएँ और पौराणिक कथाएँ उकेरी गई हैं। इनसे उस समय की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की झलक मिलती है।
4. नंदी मंडप:
- मंदिर के प्रांगण में विशाल नंदी (बैल) की मूर्ति स्थित है। यह भारत की सबसे बड़ी नंदी मूर्तियों में से एक है और इसे एक ही पत्थर से बनाया गया है।
5. जलवायु और संरचना:
- यह मंदिर ऐसा बनाया गया है कि इसके शिखर की छाया भूमि पर कभी नहीं पड़ती, जो इसकी वास्तुकला की अद्वितीयता को दर्शाता है।
1. शिव भक्ति का केंद्र:
- बृहदेश्वर मंदिर शिव भगवान को समर्पित है और इसे एक पंचभूत स्थलम (पांच तत्वों के मंदिर) के रूप में भी देखा जाता है। यह आकाश तत्व का प्रतीक माना जाता है।
2. धार्मिक अनुष्ठान:
- इस मंदिर में शिव की आराधना के साथ-साथ नृत्य, संगीत, और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
- यह मंदिर चोल काल के धार्मिक जीवन और परंपराओं को जीवित रखने का प्रतीक है।
3. भारतीय नृत्य और संगीत का संरक्षण:
- मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई भरतनाट्यम की मुद्राएँ भारतीय नृत्य परंपराओं के संरक्षण का प्रमाण हैं।
4. महाशिवरात्रि:
- महाशिवरात्रि के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्त एकत्र होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
1. चोल साम्राज्य का प्रतीक:
- यह मंदिर चोल साम्राज्य की सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक है।
- मंदिर की दीवारों पर खुदे शिलालेखों में चोल साम्राज्य के विस्तार और उनके दान की कहानियाँ दर्ज हैं।
2. यूनेस्को विश्व धरोहर:
- 1987 में इसे यूनेस्को ने ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स की श्रेणी में शामिल किया, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
3. पर्यटन केंद्र:
- यह मंदिर भारतीय इतिहास और स्थापत्य में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
- यह तंजावुर की सांस्कृतिक पहचान और तमिलनाडु के गौरव का प्रतीक है।
1. ग्रेनाइट का उपयोग:
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है, जो तंजावुर क्षेत्र में उपलब्ध नहीं है। माना जाता है कि ग्रेनाइट को सैकड़ों किलोमीटर दूर से लाया गया था।
2. गर्भगृह की संरचना:
- मंदिर का गर्भगृह एक अत्यंत परिष्कृत ढंग से बनाया गया है, जिससे मंदिर हजार साल से अधिक समय तक स्थिर और संरक्षित है।
3. भूकंपरोधी निर्माण:
- मंदिर की संरचना इस प्रकार बनाई गई है कि यह भूकंप के झटकों को सह सके। यह उस समय के तकनीकी ज्ञान और वास्तुकला की प्रगति का प्रमाण है।
इस मंदिर का निर्माण शिव भगवान को समर्पित है और यह द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसे भारत के महानतम मंदिरों में गिना जाता है। नीचे इस मंदिर के इतिहास, महत्व, और अन्य पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है:
तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति का एक अद्भुत रत्न है। यह न केवल चोल साम्राज्य की शक्ति और समृद्धि को दर्शाता है, बल्कि भारतीय स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं की अद्वितीयता को भी उजागर करता है। आज, यह मंदिर न केवल धार्मिक भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत और विश्व धरोहर का हिस्सा बनकर नई पीढ़ियों को हमारी समृद्ध संस्कृति और इतिहास से जोड़ता है।
बृहदेश्वर मंदिर का इतिहास
1. निर्माण का कालखंड:
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल साम्राज्य की समृद्धि और शक्ति के प्रतीक के रूप में किया गया था।
- इसका निर्माण 1003 से 1010 ई. के बीच हुआ और इसे राजा राजराज चोल प्रथम ने अपनी सैन्य उपलब्धियों और धार्मिक भक्ति को दर्शाने के लिए बनवाया।
2. राजराज चोल प्रथम का योगदान:
- इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर राजा की शक्ति और शिव भगवान के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाता है।
- राजा ने इस मंदिर के लिए बड़ी मात्रा में धन का दान दिया और यहां पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए स्थायी व्यवस्थाएँ कीं।
3. चोल साम्राज्य की कलात्मकता:
- मंदिर का निर्माण चोल वंश की वास्तुकला और मूर्तिकला की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता है।
- यह चोल साम्राज्य के दौरान मंदिर स्थापत्य के चरम उत्कर्ष को दर्शाता है।
4. भविष्य में योगदान:
- चोल साम्राज्य के पतन के बाद, इस मंदिर का रख-रखाव नायक और मराठा राजाओं ने किया।
- मराठा शासन के दौरान इसे बृहदेश्वर मंदिर कहा जाने लगा।
बृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य विशेषताएँ
1. द्रविड़ स्थापत्य कला का शिखर:
- यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना हुआ है, जिसमें ऊंचे गोपुरम (प्रवेश द्वार) और विस्तृत प्रांगण होते हैं।
- इसका मुख्य विमान (शिखर) 66 मीटर ऊंचा है और इसे ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है। यह भारत के सबसे ऊंचे मंदिर शिखरों में से एक है।
2. शिखर पर कुम्भम्:
- मंदिर के शिखर पर एक विशाल कुम्भम् (कलश) स्थित है, जिसका वजन लगभग 80 टन है। इसे एक ही ग्रेनाइट पत्थर से तराशा गया है और यह इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है।
- किंवदंती है कि इसे ऊपर चढ़ाने के लिए 6 किमी लंबा एक रैंप बनाया गया था।
3. मूर्ति और नक्काशी:
- गर्भगृह में स्थित शिवलिंग विश्व के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
- मंदिर की दीवारों पर चोल वंश के कालखंड के चित्र, नृत्य मुद्राएँ और पौराणिक कथाएँ उकेरी गई हैं। इनसे उस समय की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की झलक मिलती है।
4. नंदी मंडप:
- मंदिर के प्रांगण में विशाल नंदी (बैल) की मूर्ति स्थित है। यह भारत की सबसे बड़ी नंदी मूर्तियों में से एक है और इसे एक ही पत्थर से बनाया गया है।
5. जलवायु और संरचना:
- यह मंदिर ऐसा बनाया गया है कि इसके शिखर की छाया भूमि पर कभी नहीं पड़ती, जो इसकी वास्तुकला की अद्वितीयता को दर्शाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
1. शिव भक्ति का केंद्र:
- बृहदेश्वर मंदिर शिव भगवान को समर्पित है और इसे एक पंचभूत स्थलम (पांच तत्वों के मंदिर) के रूप में भी देखा जाता है। यह आकाश तत्व का प्रतीक माना जाता है।
2. धार्मिक अनुष्ठान:
- इस मंदिर में शिव की आराधना के साथ-साथ नृत्य, संगीत, और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
- यह मंदिर चोल काल के धार्मिक जीवन और परंपराओं को जीवित रखने का प्रतीक है।
3. भारतीय नृत्य और संगीत का संरक्षण:
- मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई भरतनाट्यम की मुद्राएँ भारतीय नृत्य परंपराओं के संरक्षण का प्रमाण हैं।
4. महाशिवरात्रि:
- महाशिवरात्रि के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्त एकत्र होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
1. चोल साम्राज्य का प्रतीक:
- यह मंदिर चोल साम्राज्य की सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक है।
- मंदिर की दीवारों पर खुदे शिलालेखों में चोल साम्राज्य के विस्तार और उनके दान की कहानियाँ दर्ज हैं।
2. यूनेस्को विश्व धरोहर:
- 1987 में इसे यूनेस्को ने ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स की श्रेणी में शामिल किया, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
3. पर्यटन केंद्र:
- यह मंदिर भारतीय इतिहास और स्थापत्य में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
- यह तंजावुर की सांस्कृतिक पहचान और तमिलनाडु के गौरव का प्रतीक है।
इंजीनियरिंग और तकनीकी चमत्कार
1. ग्रेनाइट का उपयोग:
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है, जो तंजावुर क्षेत्र में उपलब्ध नहीं है। माना जाता है कि ग्रेनाइट को सैकड़ों किलोमीटर दूर से लाया गया था।
2. गर्भगृह की संरचना:
- मंदिर का गर्भगृह एक अत्यंत परिष्कृत ढंग से बनाया गया है, जिससे मंदिर हजार साल से अधिक समय तक स्थिर और संरक्षित है।
3. भूकंपरोधी निर्माण:
- मंदिर की संरचना इस प्रकार बनाई गई है कि यह भूकंप के झटकों को सह सके। यह उस समय के तकनीकी ज्ञान और वास्तुकला की प्रगति का प्रमाण है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि