शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
देव दिवाली और दिवाली में क्या अंतर है?
देव दिवाली और दिवाली दोनों ही हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहार हैं, लेकिन इनके बीच समय, उद्देश्य, धार्मिक महत्व, और मनाने के तरीकों में कई अंतर हैं। दिवाली व्यक्तिगत और पारिवारिक खुशी, रोशनी, और समृद्धि का त्योहार है, जबकि देव दिवाली एक आध्यात्मिक और धार्मिक उत्सव है, जो भगवान शिव की महिमा और गंगा की पवित्रता को समर्पित है। दोनों त्योहार अपनी विशेषताओं और महत्व में अनूठे हैं और हिंदू संस्कृति को समृद्ध करते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:
- दिवाली:
- दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या (नई चंद्रमा की रात) को मनाई जाती है।
- यह हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन और कार्तिक माह के संधिकाल में आती है।
- आमतौर पर यह त्योहार अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली कार्तिक माह की पूर्णिमा (पूर्ण चंद्रमा की रात) को मनाई जाती है।
- यह दिवाली के 15 दिन बाद आती है, आमतौर पर नवंबर के अंत या दिसंबर की शुरुआत में।
- दिवाली:
- दिवाली का संबंध भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने से है। अयोध्यावासियों ने भगवान राम, माता सीता, और लक्ष्मण के स्वागत में दीये जलाए थे।
- इसे लक्ष्मी पूजा और धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए भी मनाया जाता है।
- यह असुर नरकासुर के वध और प्रकाश के पर्व के रूप में भी मनाई जाती है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली का संबंध भगवान शिव से है। इस दिन उन्होंने असुर त्रिपुरासुर का वध किया था।
- इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन देवताओं ने शिव की विजय का उत्सव मनाया था।
- यह दिन देवताओं के लिए खास है, इसलिए इसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
- दिवाली:
- दिवाली का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, और अधर्म पर धर्म की विजय को मनाना है।
- यह लक्ष्मी पूजा के माध्यम से समृद्धि, धन, और वैभव के लिए प्रार्थना का समय होता है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली भगवान शिव की विजय और देवताओं के प्रति श्रद्धा को समर्पित है।
- यह गंगा नदी, शिव, और धार्मिक अनुष्ठानों से आत्मिक शुद्धि का पर्व है।
- दिवाली:
- दीपक जलाने, लक्ष्मी-गणेश की पूजा, घर की सफाई और सजावट, मिठाई बांटने, और पटाखे जलाने का प्रचलन है।
- इसे परिवार और समाज के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
- देव दिवाली:
- मुख्य रूप से यह गंगा घाटों पर दीपदान, गंगा आरती, और शिव पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
- वाराणसी के घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
- दिवाली:
- यह भारत और दुनियाभर में हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा व्यापक रूप से मनाई जाती है।
- इसे सभी जगह समान उत्साह से मनाया जाता है।
- देव दिवाली:
- यह मुख्य रूप से वाराणसी और गंगा नदी से जुड़े तीर्थ स्थलों पर बड़े स्तर पर मनाई जाती है।
- वाराणसी के घाट इस पर्व के मुख्य केंद्र हैं।
- दिवाली:
- यह एक घरेलू और पारिवारिक त्योहार है।
- घरों में दीये जलाना, रोशनी करना, और लक्ष्मी पूजा इसके मुख्य भाग हैं।
- इसमें व्यापारिक और आर्थिक पहलू भी शामिल हैं, जैसे धनतेरस और नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत।
- देव दिवाली:
- यह अधिकतर धार्मिक और सामूहिक अनुष्ठानों पर केंद्रित होता है।
- गंगा तट पर लाखों दीयों का प्रकाश और धार्मिक आयोजन इसके प्रमुख आकर्षण हैं।
- दिवाली:
- यह त्योहार व्यक्तिगत और पारिवारिक समृद्धि, खुशी, और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
- यह अच्छाई की जीत और जीवन में प्रकाश लाने का संदेश देता है।
- देव दिवाली:
- यह देवताओं की कृपा, आत्मा की शुद्धि, और मोक्ष के लिए प्रार्थना का पर्व है।
- यह गंगा और शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करता है।
1. समय का अंतर
- दिवाली:
- दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या (नई चंद्रमा की रात) को मनाई जाती है।
- यह हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन और कार्तिक माह के संधिकाल में आती है।
- आमतौर पर यह त्योहार अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली कार्तिक माह की पूर्णिमा (पूर्ण चंद्रमा की रात) को मनाई जाती है।
- यह दिवाली के 15 दिन बाद आती है, आमतौर पर नवंबर के अंत या दिसंबर की शुरुआत में।
2. पौराणिक कथा का अंतर
- दिवाली:
- दिवाली का संबंध भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने से है। अयोध्यावासियों ने भगवान राम, माता सीता, और लक्ष्मण के स्वागत में दीये जलाए थे।
- इसे लक्ष्मी पूजा और धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए भी मनाया जाता है।
- यह असुर नरकासुर के वध और प्रकाश के पर्व के रूप में भी मनाई जाती है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली का संबंध भगवान शिव से है। इस दिन उन्होंने असुर त्रिपुरासुर का वध किया था।
- इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन देवताओं ने शिव की विजय का उत्सव मनाया था।
- यह दिन देवताओं के लिए खास है, इसलिए इसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
3. उद्देश्य का अंतर
- दिवाली:
- दिवाली का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, और अधर्म पर धर्म की विजय को मनाना है।
- यह लक्ष्मी पूजा के माध्यम से समृद्धि, धन, और वैभव के लिए प्रार्थना का समय होता है।
- देव दिवाली:
- देव दिवाली भगवान शिव की विजय और देवताओं के प्रति श्रद्धा को समर्पित है।
- यह गंगा नदी, शिव, और धार्मिक अनुष्ठानों से आत्मिक शुद्धि का पर्व है।
4. धार्मिक परंपराओं और अनुष्ठानों का अंतर
- दिवाली:
- दीपक जलाने, लक्ष्मी-गणेश की पूजा, घर की सफाई और सजावट, मिठाई बांटने, और पटाखे जलाने का प्रचलन है।
- इसे परिवार और समाज के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
- देव दिवाली:
- मुख्य रूप से यह गंगा घाटों पर दीपदान, गंगा आरती, और शिव पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
- वाराणसी के घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
5. भौगोलिक महत्व
- दिवाली:
- यह भारत और दुनियाभर में हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा व्यापक रूप से मनाई जाती है।
- इसे सभी जगह समान उत्साह से मनाया जाता है।
- देव दिवाली:
- यह मुख्य रूप से वाराणसी और गंगा नदी से जुड़े तीर्थ स्थलों पर बड़े स्तर पर मनाई जाती है।
- वाराणसी के घाट इस पर्व के मुख्य केंद्र हैं।
6. त्योहार की प्रकृति और उत्सव का रूप
- दिवाली:
- यह एक घरेलू और पारिवारिक त्योहार है।
- घरों में दीये जलाना, रोशनी करना, और लक्ष्मी पूजा इसके मुख्य भाग हैं।
- इसमें व्यापारिक और आर्थिक पहलू भी शामिल हैं, जैसे धनतेरस और नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत।
- देव दिवाली:
- यह अधिकतर धार्मिक और सामूहिक अनुष्ठानों पर केंद्रित होता है।
- गंगा तट पर लाखों दीयों का प्रकाश और धार्मिक आयोजन इसके प्रमुख आकर्षण हैं।
7. सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश
- दिवाली:
- यह त्योहार व्यक्तिगत और पारिवारिक समृद्धि, खुशी, और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
- यह अच्छाई की जीत और जीवन में प्रकाश लाने का संदेश देता है।
- देव दिवाली:
- यह देवताओं की कृपा, आत्मा की शुद्धि, और मोक्ष के लिए प्रार्थना का पर्व है।
- यह गंगा और शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि