शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
देव दिवाली क्या है, और इसे क्यों मनाया जाता है?
देव दिवाली (या देव दीपावली) एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जिसे कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है और यह मुख्यतः वाराणसी में गंगा नदी के तट पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवता स्वयं धरती पर आकर दीप जलाते हैं और भगवान शिव तथा गंगा मां का पूजन करते हैं।
देव दिवाली एक ऐसा त्योहार है जो भगवान शिव की महिमा, देवताओं की भक्ति, और गंगा नदी के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। वाराणसी में इसे देखना एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव के समान है।
1. पौराणिक कथा:
- देव दिवाली को असुर त्रिपुरासुर के वध से जोड़ा जाता है। त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों को आतंकित कर दिया था। भगवान शिव ने उसका संहार किया और देवताओं ने इस विजय के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
2. गंगा और काशी का महत्व:
- वाराणसी में गंगा नदी को पवित्र और दिव्य माना जाता है। देव दिवाली के दिन गंगा आरती, दीपदान, और पूजा का आयोजन किया जाता है, जो इसे अत्यंत पवित्र बनाता है।
1. दीपों का प्रज्वलन:
- गंगा घाटों पर लाखों दीये जलाए जाते हैं। वाराणसी के घाटों पर दीयों की रोशनी से अद्भुत दृश्य बनता है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।
2. गंगा आरती:
- देव दिवाली पर गंगा आरती विशेष महत्व रखती है। यह आरती भगवान शिव, गंगा नदी, और देवताओं को समर्पित होती है।
3. स्नान और दान:
- इस दिन गंगा स्नान को पवित्र माना जाता है। गंगा स्नान के बाद दान, विशेष रूप से अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जाता है।
4. मंदिरों में पूजा-अर्चना:
- इस दिन शिव, विष्णु, और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
5. सांस्कृतिक कार्यक्रम:
- वाराणसी में इस दिन संगीत और नृत्य के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जो भारतीय कला और संस्कृति का उत्सव मनाते हैं।
1. सामाजिक एकता का प्रतीक:
- देव दिवाली में स्थानीय और वैश्विक भक्त मिलकर उत्सव मनाते हैं, जो समाज में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देता है।
2. धार्मिक पुण्य का समय:
- गंगा आरती, दीपदान, और दान-पुण्य करने से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
3. पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का संदेश:
- गंगा घाटों पर लाखों दीयों का प्रकाश एक पवित्र और प्राकृतिक रूप से अनुकूल उत्सव का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- दीपमालिका:
- गंगा के तट पर दीयों की लहरें स्वर्गिक दृश्य उत्पन्न करती हैं।
- नौकायन उत्सव:
- गंगा में नावों से दीयों और आरती का दृश्य देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
- पर्व का वैश्विक महत्व:
- वाराणसी में देव दिवाली एक पर्यटक आकर्षण भी बन गया है, जिससे स्थानीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रचार होता है।
देव दिवाली एक ऐसा त्योहार है जो भगवान शिव की महिमा, देवताओं की भक्ति, और गंगा नदी के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। वाराणसी में इसे देखना एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव के समान है।
देव दिवाली का महत्व
1. पौराणिक कथा:
- देव दिवाली को असुर त्रिपुरासुर के वध से जोड़ा जाता है। त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों को आतंकित कर दिया था। भगवान शिव ने उसका संहार किया और देवताओं ने इस विजय के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
2. गंगा और काशी का महत्व:
- वाराणसी में गंगा नदी को पवित्र और दिव्य माना जाता है। देव दिवाली के दिन गंगा आरती, दीपदान, और पूजा का आयोजन किया जाता है, जो इसे अत्यंत पवित्र बनाता है।
देव दिवाली कैसे मनाई जाती है?
1. दीपों का प्रज्वलन:
- गंगा घाटों पर लाखों दीये जलाए जाते हैं। वाराणसी के घाटों पर दीयों की रोशनी से अद्भुत दृश्य बनता है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।
2. गंगा आरती:
- देव दिवाली पर गंगा आरती विशेष महत्व रखती है। यह आरती भगवान शिव, गंगा नदी, और देवताओं को समर्पित होती है।
3. स्नान और दान:
- इस दिन गंगा स्नान को पवित्र माना जाता है। गंगा स्नान के बाद दान, विशेष रूप से अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जाता है।
4. मंदिरों में पूजा-अर्चना:
- इस दिन शिव, विष्णु, और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
5. सांस्कृतिक कार्यक्रम:
- वाराणसी में इस दिन संगीत और नृत्य के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जो भारतीय कला और संस्कृति का उत्सव मनाते हैं।
देव दिवाली का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
1. सामाजिक एकता का प्रतीक:
- देव दिवाली में स्थानीय और वैश्विक भक्त मिलकर उत्सव मनाते हैं, जो समाज में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देता है।
2. धार्मिक पुण्य का समय:
- गंगा आरती, दीपदान, और दान-पुण्य करने से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
3. पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का संदेश:
- गंगा घाटों पर लाखों दीयों का प्रकाश एक पवित्र और प्राकृतिक रूप से अनुकूल उत्सव का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
विशेष आकर्षण
- दीपमालिका:
- गंगा के तट पर दीयों की लहरें स्वर्गिक दृश्य उत्पन्न करती हैं।
- नौकायन उत्सव:
- गंगा में नावों से दीयों और आरती का दृश्य देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
- पर्व का वैश्विक महत्व:
- वाराणसी में देव दिवाली एक पर्यटक आकर्षण भी बन गया है, जिससे स्थानीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रचार होता है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: