शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
देव दिवाली का आयोजन केवल बनारस में ही होता है या अन्य स्थानों पर भी?
देव दिवाली का प्रमुख आयोजन वाराणसी (बनारस) में होता है, लेकिन यह पर्व केवल बनारस तक सीमित नहीं है। हालांकि, वाराणसी में इस दिन का महत्व बहुत अधिक है और यहां इस पर्व की भव्यता और धार्मिक अनुष्ठान विशेष रूप से दिखाई देते हैं, लेकिन देव दिवाली का आयोजन अन्य कई स्थानों पर भी होता है, खासकर उन स्थानों पर जो गंगा नदी के किनारे स्थित हैं और जहां हिंदू धर्म और संस्कृति का गहरा प्रभाव है। आइए जानते हैं कि देव दिवाली का आयोजन किन-किन अन्य स्थानों पर होता है:
देव दिवाली का आयोजन वाराणसी में विशेष रूप से बहुत भव्य रूप से होता है, लेकिन यह पर्व केवल वाराणसी तक ही सीमित नहीं है। प्रयागराज, हरिद्वार, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन, कोलकाता, और अन्य गंगा तटों और पवित्र तीर्थ स्थलों पर भी देव दिवाली मनाई जाती है। इन स्थानों पर गंगा पूजा, दीपदान, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से इस पर्व का महत्व मनाया जाता है, और श्रद्धालु गंगा नदी की पवित्रता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- वाराणसी में देव दिवाली का आयोजन सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध होता है। यहां गंगा नदी के तट पर लाखों दीप जलाए जाते हैं, और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
- इस दिन, काशी विश्वनाथ मंदिर, दशाश्वमेध घाट, और असी घाट जैसे प्रमुख घाटों पर भव्य दीपदान और पूजा आयोजित की जाती है।
- यहाँ के घाटों पर दीपों का प्रकाश वातावरण को दिव्य बना देता है, और हजारों श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करके अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
- प्रयागराज में भी देव दिवाली मनाई जाती है, खासकर गंगा के तटों पर। यहां पवित्र संगम के पास श्रद्धालु दीप जलाकर पूजा करते हैं।
- संगम क्षेत्र और अन्य प्रमुख घाटों पर दीपों का आभा और भव्यता होती है, और गंगा पूजा का आयोजन किया जाता है।
- हरिद्वार में भी देव दिवाली का विशेष महत्व है। यहाँ गंगा नदी के किनारे हर की पौड़ी पर पूजा और दीपदान का आयोजन होता है।
- हरिद्वार में गंगा आरती के साथ देव दिवाली मनाई जाती है, जिसमें लोग गंगा मां को दीप अर्पित करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- दिल्ली में भी कुछ स्थानों पर देव दिवाली का आयोजन होता है, खासकर यमुनाघाट के पास और गंगा से संबंधित अन्य घाटों पर। यहाँ गंगा पूजा और दीप जलाने की परंपरा कुछ हद तक बनारस जैसी होती है, हालांकि यह उतना भव्य नहीं होता।
- तमिलनाडु के कुछ स्थानों, विशेष रूप से कांची और चेन्नई में भी देव दिवाली मनाई जाती है। यहां दक्षिण भारतीय संस्कृति में भी गंगा को पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है, और देव दिवाली के दिन वहां के प्रमुख मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर दीप जलाए जाते हैं।
- मथुरा और वृंदावन जैसे तीर्थस्थल, जो भगवान कृष्ण से जुड़े हैं, वहां भी देव दिवाली का आयोजन विशेष रूप से होता है। इन स्थानों पर दीवाली के समय विशेष पूजा और दीप जलाए जाते हैं, और देव दिवाली के दिन इन स्थानों पर भी गंगा और अन्य देवी-देवताओं की पूजा होती है।
- उज्जैन में भी देव दिवाली का आयोजन होता है, खासकर महाकालेश्वर मंदिर में। इस दिन महाकाल के दरबार में दीप जलाए जाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- कोलकाता में, विशेष रूप से हुगली नदी के किनारे देव दिवाली मनाई जाती है। यहाँ के घाटों पर दीपदान और पूजा होती है। यहां के लोग भी गंगा नदी को पवित्र मानते हैं और इस दिन विशेष पूजा अर्पित करते हैं।
- गया में भी देव दिवाली मनाई जाती है, क्योंकि यहाँ के तीर्थ स्थल में भी गंगा का महत्व है। यहां के घाटों पर पूजा और दीप जलाने की परंपरा है, जो देव दिवाली के दिन होती है।
देव दिवाली का आयोजन वाराणसी में विशेष रूप से बहुत भव्य रूप से होता है, लेकिन यह पर्व केवल वाराणसी तक ही सीमित नहीं है। प्रयागराज, हरिद्वार, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन, कोलकाता, और अन्य गंगा तटों और पवित्र तीर्थ स्थलों पर भी देव दिवाली मनाई जाती है। इन स्थानों पर गंगा पूजा, दीपदान, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से इस पर्व का महत्व मनाया जाता है, और श्रद्धालु गंगा नदी की पवित्रता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
1. वाराणसी (बनारस)
- वाराणसी में देव दिवाली का आयोजन सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध होता है। यहां गंगा नदी के तट पर लाखों दीप जलाए जाते हैं, और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
- इस दिन, काशी विश्वनाथ मंदिर, दशाश्वमेध घाट, और असी घाट जैसे प्रमुख घाटों पर भव्य दीपदान और पूजा आयोजित की जाती है।
- यहाँ के घाटों पर दीपों का प्रकाश वातावरण को दिव्य बना देता है, और हजारों श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करके अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
2. प्रयागराज (इलाहाबाद)
- प्रयागराज में भी देव दिवाली मनाई जाती है, खासकर गंगा के तटों पर। यहां पवित्र संगम के पास श्रद्धालु दीप जलाकर पूजा करते हैं।
- संगम क्षेत्र और अन्य प्रमुख घाटों पर दीपों का आभा और भव्यता होती है, और गंगा पूजा का आयोजन किया जाता है।
3. हरिद्वार
- हरिद्वार में भी देव दिवाली का विशेष महत्व है। यहाँ गंगा नदी के किनारे हर की पौड़ी पर पूजा और दीपदान का आयोजन होता है।
- हरिद्वार में गंगा आरती के साथ देव दिवाली मनाई जाती है, जिसमें लोग गंगा मां को दीप अर्पित करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
4. दिल्ली
- दिल्ली में भी कुछ स्थानों पर देव दिवाली का आयोजन होता है, खासकर यमुनाघाट के पास और गंगा से संबंधित अन्य घाटों पर। यहाँ गंगा पूजा और दीप जलाने की परंपरा कुछ हद तक बनारस जैसी होती है, हालांकि यह उतना भव्य नहीं होता।
5. कांची कुमारी (तमिलनाडु)
- तमिलनाडु के कुछ स्थानों, विशेष रूप से कांची और चेन्नई में भी देव दिवाली मनाई जाती है। यहां दक्षिण भारतीय संस्कृति में भी गंगा को पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है, और देव दिवाली के दिन वहां के प्रमुख मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर दीप जलाए जाते हैं।
6. मथुरा और वृंदावन
- मथुरा और वृंदावन जैसे तीर्थस्थल, जो भगवान कृष्ण से जुड़े हैं, वहां भी देव दिवाली का आयोजन विशेष रूप से होता है। इन स्थानों पर दीवाली के समय विशेष पूजा और दीप जलाए जाते हैं, और देव दिवाली के दिन इन स्थानों पर भी गंगा और अन्य देवी-देवताओं की पूजा होती है।
7. उज्जैन
- उज्जैन में भी देव दिवाली का आयोजन होता है, खासकर महाकालेश्वर मंदिर में। इस दिन महाकाल के दरबार में दीप जलाए जाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
8. कोलकाता
- कोलकाता में, विशेष रूप से हुगली नदी के किनारे देव दिवाली मनाई जाती है। यहाँ के घाटों पर दीपदान और पूजा होती है। यहां के लोग भी गंगा नदी को पवित्र मानते हैं और इस दिन विशेष पूजा अर्पित करते हैं।
9. गया
- गया में भी देव दिवाली मनाई जाती है, क्योंकि यहाँ के तीर्थ स्थल में भी गंगा का महत्व है। यहां के घाटों पर पूजा और दीप जलाने की परंपरा है, जो देव दिवाली के दिन होती है।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 03 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-03
मास: मार्गशीर्ष
दिन: मंगलवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: द्वितीया तिथि 01:09 PM तक उपरांत तृतीया
नक्षत्र: नक्षत्र मूल 04:41 PM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:50 AM – 12:31 PM
राहु काल: 2:45 PM – 4:02 PM
यमघंट: 9:36 AM – 10:53 AM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: उत्तर
आज का व्रत त्यौहार: