शुभम
सत्य से बड़ा तो ईश्वर भी नहीं
देव दिवाली में शामिल होने के लिए किन-किन गतिविधियों का आयोजन किया जाता है?
देव दिवाली एक बहुत ही महत्वपूर्ण और धार्मिक पर्व है, जो खासकर वाराणसी (बनारस) में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन अन्य स्थानों पर भी इसे मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य गंगा पूजा, दीपदान, और देवताओं की पूजा है। देव दिवाली में शामिल होने के लिए विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।
देव दिवाली का आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसमें गंगा पूजा, दीपदान, मंदिर पूजा, कला और सांस्कृतिक कार्यक्रम, व्रत और उपवास, और हवन यज्ञ जैसी विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं। यह पर्व विशेष रूप से वाराणसी और गंगा नदी के तटों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और भक्तगण इसे एक अवसर के रूप में मानते हैं, जिसमें वे आध्यात्मिक शांति और धार्मिक उन्नति प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं।
- वाराणसी में देव दिवाली के दिन गंगा नदी में लाखों दीप जलाए जाते हैं। इस दिन, नदी के तट पर हर घाट पर श्रद्धालु दीपकों को गंगा में बहाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। यह दृश्य बहुत ही अद्भुत और भव्य होता है, जिसमें गंगा के पानी पर दीपों की लहरियां तैरती हैं।
- यह गतिविधि गंगा मां को धन्यवाद देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए होती है। दीपों से नदी का तट रोशन हो जाता है, और एक दिव्य वातावरण का निर्माण होता है।
- देव दिवाली के दिन गंगा पूजन का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट और अन्य प्रमुख घाटों पर गंगा आरती होती है। इसमें मंत्रोच्चारण, दीप जलाना, और गंगा नदी में स्नान जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- पूजा के दौरान भक्तगण गंगा में दीपों को प्रवाहित करते हैं, साथ ही गंगाजल का पूजन भी करते हैं।
- देव दिवाली के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर, असी घाट मंदिर, दीनानाथ मंदिर, और अन्य प्रमुख मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित की जाती है। इन मंदिरों में भक्तों द्वारा भगवान शिव, माँ पार्वती, और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
- यह पूजा विशेष रूप से दीपों के साथ की जाती है, और उसमें मंत्रों का उच्चारण, भोग अर्पित करना, और ध्यान करना शामिल होता है।
- देव दिवाली के समय वाराणसी में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और कला प्रदर्शन होते हैं। इनमें नृत्य, संगीत, नाटक, और सांस्कृतिक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम आमतौर पर शहर के प्रमुख सांस्कृतिक स्थलों पर आयोजित होते हैं।
- विशेष रूप से घाटों के पास सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिससे यह दिन और भी भव्य और धार्मिक अनुभव से भरपूर बन जाता है।
- देव दिवाली के दिन कुछ लोग व्रत और उपवास रखते हैं। यह व्रत विशेष रूप से शिव और गंगा माता की पूजा के लिए होता है। भक्तगण इस दिन उपवासी रहते हुए अपनी आस्था और श्रद्धा प्रकट करते हैं।
- कुछ लोग इस दिन ध्यान और तपस्या करते हैं, ताकि उनकी आत्मा की शुद्धि हो सके और वे आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकें।
- इस दिन मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा होती है, जो विशेष रूप से शिव, गंगा, और अन्य देवताओं के सम्मान में होती है। यह दीपक अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक होते हैं। देव दिवाली पर घरों, मंदिरों और घाटों पर दीपक जलाए जाते हैं।
- कुछ स्थानों पर हवन और यज्ञ का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें मंत्र जाप और आग में घी अर्पित करने की प्रक्रिया होती है। हवन और यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है और धार्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
- कुछ स्थानों पर इस दिन विशेष धार्मिक शिक्षा और संस्कार कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बच्चों और युवाओं को धर्म, संस्कार और संस्कृतियों के बारे में बताया जाता है।
- इन कार्यक्रमों में धार्मिक पुस्तकों का पाठ, उपदेश, और ध्यान केंद्रित करने की गतिविधियाँ होती हैं।
- देव दिवाली में विशेष रूप से भगवान शिव और गंगा की पूजा होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग इस दिन कृष्ण लीला या शिव लीला का मंचन भी करते हैं।
देव दिवाली का आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसमें गंगा पूजा, दीपदान, मंदिर पूजा, कला और सांस्कृतिक कार्यक्रम, व्रत और उपवास, और हवन यज्ञ जैसी विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं। यह पर्व विशेष रूप से वाराणसी और गंगा नदी के तटों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और भक्तगण इसे एक अवसर के रूप में मानते हैं, जिसमें वे आध्यात्मिक शांति और धार्मिक उन्नति प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं।
यहां कुछ प्रमुख गतिविधियाँ हैं जो देव दिवाली के दिन आयोजित की जाती हैं:
1. दीपदान (Deepdan)
- वाराणसी में देव दिवाली के दिन गंगा नदी में लाखों दीप जलाए जाते हैं। इस दिन, नदी के तट पर हर घाट पर श्रद्धालु दीपकों को गंगा में बहाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। यह दृश्य बहुत ही अद्भुत और भव्य होता है, जिसमें गंगा के पानी पर दीपों की लहरियां तैरती हैं।
- यह गतिविधि गंगा मां को धन्यवाद देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए होती है। दीपों से नदी का तट रोशन हो जाता है, और एक दिव्य वातावरण का निर्माण होता है।
2. गंगा पूजा
- देव दिवाली के दिन गंगा पूजन का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट और अन्य प्रमुख घाटों पर गंगा आरती होती है। इसमें मंत्रोच्चारण, दीप जलाना, और गंगा नदी में स्नान जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- पूजा के दौरान भक्तगण गंगा में दीपों को प्रवाहित करते हैं, साथ ही गंगाजल का पूजन भी करते हैं।
3. मंदिरों में पूजा-अर्चना
- देव दिवाली के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर, असी घाट मंदिर, दीनानाथ मंदिर, और अन्य प्रमुख मंदिरों में विशेष पूजा आयोजित की जाती है। इन मंदिरों में भक्तों द्वारा भगवान शिव, माँ पार्वती, और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
- यह पूजा विशेष रूप से दीपों के साथ की जाती है, और उसमें मंत्रों का उच्चारण, भोग अर्पित करना, और ध्यान करना शामिल होता है।
4. कला और सांस्कृतिक कार्यक्रम
- देव दिवाली के समय वाराणसी में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और कला प्रदर्शन होते हैं। इनमें नृत्य, संगीत, नाटक, और सांस्कृतिक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम आमतौर पर शहर के प्रमुख सांस्कृतिक स्थलों पर आयोजित होते हैं।
- विशेष रूप से घाटों के पास सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिससे यह दिन और भी भव्य और धार्मिक अनुभव से भरपूर बन जाता है।
5. व्रत और उपवास
- देव दिवाली के दिन कुछ लोग व्रत और उपवास रखते हैं। यह व्रत विशेष रूप से शिव और गंगा माता की पूजा के लिए होता है। भक्तगण इस दिन उपवासी रहते हुए अपनी आस्था और श्रद्धा प्रकट करते हैं।
- कुछ लोग इस दिन ध्यान और तपस्या करते हैं, ताकि उनकी आत्मा की शुद्धि हो सके और वे आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकें।
6. मिट्टी के दीपक जलाना
- इस दिन मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा होती है, जो विशेष रूप से शिव, गंगा, और अन्य देवताओं के सम्मान में होती है। यह दीपक अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक होते हैं। देव दिवाली पर घरों, मंदिरों और घाटों पर दीपक जलाए जाते हैं।
7. हवन और यज्ञ
- कुछ स्थानों पर हवन और यज्ञ का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें मंत्र जाप और आग में घी अर्पित करने की प्रक्रिया होती है। हवन और यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है और धार्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
8. संस्कार और शिक्षा कार्यक्रम
- कुछ स्थानों पर इस दिन विशेष धार्मिक शिक्षा और संस्कार कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बच्चों और युवाओं को धर्म, संस्कार और संस्कृतियों के बारे में बताया जाता है।
- इन कार्यक्रमों में धार्मिक पुस्तकों का पाठ, उपदेश, और ध्यान केंद्रित करने की गतिविधियाँ होती हैं।
9. कृष्ण और शिव के उत्सव
- देव दिवाली में विशेष रूप से भगवान शिव और गंगा की पूजा होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग इस दिन कृष्ण लीला या शिव लीला का मंचन भी करते हैं।
पञ्चाङ्ग कैलेण्डर 02 Dec 2024 (उज्जैन)
आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक: 2024-12-02
मास: मार्गशीर्ष
दिन: सोमवार
पक्ष: शुक्ल पक्ष
तिथि: प्रतिपदा तिथि 12:43 PM तक उपरांत द्वितीया
नक्षत्र: नक्षत्र ज्येष्ठा 03:45 PM तक उपरांत मूल
शुभ मुहूर्त: अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM – 12:31 PM
राहु काल: 8:19 AM – 9:36 AM
यमघंट: 10:53 AM – 12:10 PM
शक संवत: 1946, क्रोधी
विक्रम संवत: 2081, पिंगल
दिशाशूल: पूरब
आज का व्रत त्यौहार: इष्टि